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रत्नसागर. कम्मं । सामाइअ जति आवारा ॥१॥ सामाइअं मिनकए । समणो इव सावन हवइ जमा। एएण कारणेणं । वहुसो सामाइअंकुडा ॥२॥ सामा यिक विधिं लीधु विधि पारिन। विधिकरतां जे कोइ अविधि हुवो होय । ते सविहं मन बचन कायायें करी मिहामि कम ॥ इति ॥ ॥ ॥
॥ ॥अथ जगचिन्तामणिचैत्यवंदन ॥१॥ ॥ इलाकारेण सं० । चैत्यवंदन करूं ॥ई॥ जगचिंतामणि जगनाह । जगगुरु जगररकण । जगबंधव जगसत्थवाह । जगलाव विप्ररकण ॥१॥ अहावय संपवित्र रूव । कम्मठ विणासण। चनवीसंपि जिनवर जयंतु अप्पमि हय सासण॥१॥कम्मनूमिहिं कम्मनूमिहि । पढमसंघयणि नक्कोसय सत्तारसय। जिणवराण विहरंतलन । नवकोडिहिं केवलिण । कोमि सहस्स नवसाहु गम्मइ । संपइ जिणवर वीसमुणि । बिहुँ कोमिहिं वरनाण। समणह कोमी सहसदु । थुणिजअ निचविहाण ॥२॥ जयनसामी जयनसामी रिसह सत्तुंजि । नजिंत पहुनेमिजिण । जय वीर सच्चनरि मंगण । तर अहिं मुणिमुवय । महरि पास उहरिभ खंमण ॥ अवर विदेहिं तियरा । चिहुं दिसि विदिसि जंकेवि । तीणागय संपइअवं जिण सबेवि ॥ ३॥ सत्ता गवइ सहस्सा। लरकाउप्पन्न अहकोडीन । वत्तीस बासिाइं । तिअलोए चेइए वंदे ॥५॥ पनरसकोडि सयाइं। कोमी बायाललरक अडवन्ना। बत्तीस सहस असिआई। सासय बिंबाइं पणमामि ॥ ५ ॥ जंकिं चिनामतित्थं कहके नमोत्थुणं कहे । जावंति चेइयाइं। जावंति केविसाहू ॥ नमोतिसिघा०॥ नवसग्गहरं पासं॥कहकै भावपूर्वक जो स्तवन बोलना होय सो बोलके दो, हाथ जोम मस्तक चढाय जयवीयराय संपूर्ण कहै ॥
॥ ॥ अथ जयवीराय॥॥ ॥ जयवीराय जगगुरु । होनममं तुह पजावन जयवं । नवनिवेन। मग्गा। णुसारिया इह फल सिधि ॥१॥ लोग विरुष्चान । गुरु जण पूजा परत्थ करणंच । सुह गुरु जो गोतवयण सेवणा आनव मखमा ॥ २॥ वारि माइ जइ विनिआ । वंधणं वीराय तुह समए । तहवि ममहुआ सेवा नवे नवे तुह्म चलणाणं ॥३॥ पुरक रकन कम्म रकन । समाहि मरणंच