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रत्नसागर. कहुं महाराय ॥ (सां० राजा सं० ) ॥ २८ ॥ इम सुणनें इखुकार राजा चेतियो । गोमीनें मोटको राज । कायरनें तो ए तजतां दोहिलो । बिन सहित सारया काज ।। (सां० राणी सं०)॥२९॥ मोह न राख्यो परिग्रह
गेमके । पायो जिन धरम सुजाण । तपस्या सगलांही आदरी। नत्कृष्टो पराक्रम आण ॥ (सां० प्राणी सं० ) ॥३०॥ सुधसंयम पाले सदा। सु मति गुपति दयाल । नमरानी परै करै गोचरी । रिष टालै दोष वयांल ॥ (सां प्राणी सं०) ॥ ३१ ॥ तारण तरण जिहाज जै । जव्य जीवनें न तारै पार । केवल ज्ञान नपायनें । सुख पाम्यां श्रीकार ॥ ३२॥ ( सां प्राणी सं०)। मोहनिवारी प्राणी समझने । निरमल भावना जाव । गए जणा थोमा कालमें। मुगति बिराज्या जाय । (सां प्राणी सं०)॥ ३३॥ राजा सहित राणी कमलावती । नृगु पुरोहित जशा नार । प्रोहित नृगुना दोय दीकरा । शिव सुख पाम्यो सार ॥ ३४ ॥ (सां प्राणी सं०) इति श्री इखुकार राजा नृगु प्रोहितरो अधिकार संपूर्णम् ॥ ॥ ॥ ॥ ॥॥(अब नव पदके (९) चैत्यवंदन (९) स्तवन(९)थुई लिखते हैं।।*॥
॥ ॥ अथ अरिहंतपद चैत्यवंदन लि०॥॥ ॥ॐ॥श्री इष्टदेवायनमः॥ ॥ जय २ श्री अरिहंत नानु । जवि क मल विकाशी । लोकालोक अरूपि रूपि । समवस्तु प्रकाशी ॥१॥ समुद्वा त मुन केवलै । दय कृत मल राशी । शुक्ल चरम शुचि पादसें । यो बर अविनाशी ॥ २ ॥ अंतरङ्ग रिपु गण हणीए । हुय अप्या अरिहंत। तसु पद पंकजमें रहित । हीर धरम नित संत ॥ ३ ॥ इति अरिहंत पद चैत्यबंदनं ॥ जिंकिंचि० । नमोजत्० ॥ * ॥
॥॥अथ प्रथम पद स्तवन लि०॥॥ ॥ * ॥ (पूजो मनरली, हां हो दादा कुशल सुरिंद पू० एदेशी )॥ श्रीतेरमगुण बसिकै कंत । कर्मकुं नंजै श्री अरिहंत । ( मन मानले )। अष्ट समय में समय तीन । सबै आहार थी होवें हीन ॥ ( म० )बादर काये मन बच जोग। तनु २ से फुन दृढ तनु योग॥ (म० ) सुखम कायते मन बच रोक । निज बीर्ये ताकुं कर फोक ( मन० )॥२॥संझी मात्रके मन