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रत्नसागर. नहीं जाळं सासरीए नहीं जान पीयरीये । पीयुजीकी सेज विगइ ॥ आनं दघन कहे सुनो नाइ साधो । ज्योतसें ज्योत मिलाईरे॥ अवधू० ॥६॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥ ॥ बेर वेर नहीं आवे। अवशर। बेर बेर नहीं आवे (ए टेक ) ज्यु जाणे त्युं करले जलाई। जनम जनम सुख पावे ॥अवशर० ॥१॥ तन धन जोवन सबही उठगे। प्राण पलकमें जावे ॥ अवशर० ॥ २॥ तन बूटे धन कोण कामको । कायकू कृपण कहावे ॥ अव० ॥३॥ जाके दिलमें साच वसत हे । ताकू फूठ न नावे ॥ अव० ॥४॥ आनंदघन प्रनु चलत पंथमें । समरि समरि गुण गावे ॥ अव०॥५॥ ॥
॥॥राग कैरवो॥2॥ ॥ॐ॥ ए जिनके पाये लागरे । तुनें कहीयें केतो ॥ ए जिनकेपा० ॥ (ए टेक)॥आगेइ जाम फिरे मद मातो । मोह निंदरीयाशुं जागरे। तुने ॥१॥ प्रनुजी प्रीतम बिन नहीं कोई प्रीतम । प्रनुजीनी पूजा व णी मागरे। तुनें ॥२॥ नवका फेरा वारी करो जिन चंदा । आनंदघन पाये लागरे ॥ तुनें ॥३॥ इति ॥ ॥ॐ॥
- |||| पुनः॥ ॥ ॥ॐ॥ हारे चित्तमें धरोरे प्यारे चित्तमें धरो । एती शीख हमारी प्यारे चित्तमें धरो। ( ए आंकणी ) थोमासा जीवनकाज अरे नर । कायेकू उल परपंच करो ॥ एती० ॥ १ ॥ कूड कपट परद्रोह करो तुम । अरे नर परनवथी न मरो ॥ एती० ॥ २ ॥ चिदानंद जो ए नही मानो तो। जनम मरणके दुःखमें परो॥ एती० ॥३॥8॥
॥॥राग गौमी॥ ॥.." ॥ ॥ अवधू निरपद विरला कोई। देख्या जग सब जोई ॥ अवधू० ॥ टेक ॥ समरस नाव नला चित्त जाके । थाप नत्थाप न होई ॥ विनाशीके घरकी बातां । जाणेंगे नर सोई॥अवधू० ॥१॥राव रंकमें नेद न जाणे । कनक उपल सम लेखे ॥ नारी नागणिको नहीं परिचय । तो शिव मंदिर देखे ॥ अवधू० ॥२॥ निंदा स्तुति श्रवणे सुणीनें । हर्ष