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राग रागयांका स्तवन
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कीनें ॥
३ ॥ कहे नथू प्रजू नेम नगीनो। कहुं बनुं आज शिर नामी रे ॥ कीनें ॥ ४ ॥ * ॥ इति० ॥*॥ ॥ *॥
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॥ ॐ ॥
॥ * ॥ राग आशावरी ॥
॥ ॐ ॥ अवधू सो जोगी गुरु मेरा । नस पदका करेरे निवेडा || वधू ॥ टेक ॥ तरुवर एक मूल बिन बाया । बिन फूले फल जागा | शाखा पत्र नहीं कर ननकुं । अमृत गगनें लागा ॥ प्र० ॥ १ ॥ तरुवर एक पंबी दोन बेठे । एक गुरू एक चेला ॥ चेलेनें जुग चुणचुण खाया । गुरू निरंतर खेला ॥ प्र० ॥ २ ॥ गगन मंगलमें
बिच कूवा । नहां हे प्रमीका वासा | सुगुरा होवे सो नर सर पी वे । नगुरा जावे प्यासा ॥ ० ॥ ३ ॥ गगनमंगलमें गन बिहानी । धरती दूध जमाया । माखन था सो विरला पाया। बाब जगत नरमाया ॥ ० ॥ ४ ॥ थड बिन पत्र पत्र बिन तुंबा । बिन जिभ्या गुण गाया | गावन वालेका रूप न रेखा । सुगुरु सोही बताया ॥ ० ॥ ५ ॥ प्रात म बिन नही जानें। अंतर ज्योति जगावे | वट अंतर परखे सोही मूरत | आनंदवन पद पावे ॥ ० ॥ ६ ॥ इति ॥ * ॥
॥ * ॥ पुनः ॥ * ॥
॥ * ॥ अवधू ऐसो ज्ञान बिचारी । वामें कोण पुरुष कोण नारी ॥ अवधू (टेक) बम्मनके घर न्हाती धोती। जोगीके घर चेली । कल मा पढ पढ नईरे तुरकमी । आपही आप अकेली ॥ अवधू० ॥ १ ॥ सुस रो हमारो बालो जोलो । सासू बाल कुंवारी । पिनजी हमारो होढे पाल गये। में हुं फुलावन हारी ॥ अवधू० ॥ २ ॥ नहीं हुँ परणी नहि हुँ कुं वारी । पुत्र जणावन हारी। काली दाढीको में कोइ नही बोड्यो । ह जुए हुँ बाल कुंवारी ॥ अवधू० ॥ ३ ॥ अढी द्वीपमें खाट खली । गगन नशीकुं तलाई । धरतीको बेडो आजकी पिछोमी । तोए न सोम नराणी ॥ अवधू० ॥ ४ ॥ गगन मंगलमें गाय वीप्राणी । वसुधा दूध जमाई । स नरे सुनो नाइ विजोगां विलोवें । कोइ एक अमृत पाईरे ॥ अवधू० ॥ ५ ॥