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________________ २४४ . रत्नसागर. . दिलरंजण देसन तेहना गुण पेंतीस । अगणित रिधधारी आचारीमां ईस । एहगुणना धारक वाहुं जिनचौवीस ॥ २ ॥ सुध अरथ अनोपम जिन जाषित सिंघांत । स्यामाद नयादिक हेतु युक्त नविभ्रांत । पाप कर दम पाणी सदगतिनी सहिनाणी । सुणिये नितनविका आगमकेरी वाणी ॥३॥ सासणनी साचीदेवी सानिधकारी । सुख कष्ट निवारण सेवीजै सुखकारी । साचै मनसमरै ते सुख लान अपारी । जिनलान पयंपै हो ज्यो जय जय कारी॥ * ॥ इति अजितनाथ स्तुतिः॥६॥ ॥ ॥ ॥॥अथ श्रीशीतलजिन स्तुति॥॥ -- ॥ ॥ सुख समकित दायक कामित सुरतरु कंद । दृढरथ नृपराणी नंदा केरोनंद । नद्दलपुर सामी फेमै नवनाफंद । चित्तचोखै नमियै श्रीशी तल जिनचंद ॥१॥ अतीत अनागत हुआ होस्ये अनंत । संप्रतिका लै जेहेत्रविदेह विचरंत । त्रिहुं नवणे ठवणा सासय असासय संत । ते सगला त्रिकरण प्रणमुं श्री अरिहंत ॥२॥ कालिक नक्तालिक अंग अ नंगपविठ । नय नंग निक्खेपा स्यादवाद मित सिह । नविजन नपगारी नारी जिन नपदेश । श्रुत श्रवणे सुणतां नासै कोमिकलेस ॥ ३ ॥ ब्रह्म जद असोका सासन सुरि सुविचार । संघ सानिधकारी निरमल समकि तधार । चिंता उखचूरै पूरय मनहजगीस । ध्यान तेहनो धरीय कहै जिनला ज सूरीस ॥४॥॥ ॥ ॥ इति श्रीशीतलजिनस्तुतिः॥७॥ ॥ ॥ अथ समवसरण नावगर्नित स्तुति ॥ ॥ ॐ॥ मिल चौविहसुरवर विरचै त्रिगडो सार । अढी गाऊ चंचो पिहलो जोयण बार । विच कनक सिंहासण पदमासन सुखकार । श्री तीरथनायक वैसे चौमुखधार ॥१॥ तीनत्र शिरोवरि चामर ढालै इंद देव इंनि वाजै मांजै कुमतीफंद । नाममल पूर्व फलके जाण दिणंद । ति हुअण जन मन मोहै सयलजिणंद ॥२॥ द्रव्य नावसु उवणा नाम नि खेपाच्यार। जिण गणहर नाष्या सूत्रसिधांत महार। जिनवरनी पमिमा जि नसारिषी सुखकार । सुननावै वंदो पूजो जग जय कार ॥ ३ ॥ पुःखहर णी मंगलकरणी जिनवरवाणी । नववेद कृपाणी मीठी अमिय समाणी । म
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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