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नवपद बमी पूजा. (ढाल)॥ ॥ तपसिशायें रत सदा । प्रादश अंगनो ध्यातारे । नपाध्या य ते आतमा। जगबंधव जगभ्रातारे। (बी० तु.)॥ १९॥ नझी० ॥ इति चोथे पदै श्रीपाठकजीकी कलश पूजा सं०॥४॥॥
॥ अथ पांचमी साधू पदपूजा लि०॥॥ * ॥ (दूहा) मोहमारग साधन नणी। सावधान थया जेह । ते मुनिवर पद वंदतां । निरमल थायै देह ॥१॥( काव्य ) साहूण संसा हिय संयमाणं । नमो २ शुच दया दमाणं । तिगुत्त गुत्ताण समाहियाणं । मुणीण माणंद पय घ्यिाणं ॥ ४० ॥ करै सेवना सूरि वायग गणीनी । करं वर्णना तेहनी सी मुणीनी । समेता सदा पंचसुमती त्रिगुप्ता । त्रिगुप्ते नहीं कांमनोगेषु लिप्ता ॥ ४१॥ बली बाह्य अभ्यं तरै ग्रंथटाली । हुइं मुक्तिनें जोग चारित्र पाली। शुनष्टांग योगै रमै चित्तवाली । नमुं साधुनें तेह नि ज पाप टाली॥४२॥ ॥ ( ढाल )॥ * ॥ सकल विषय विष वारिनें। निकामी निस्संगी जी। नव दव ताप समावता । आतम साधन रंगी जी (नबालो)। जेरम्या शुध स्वरूप रमणे देह निर्मम निर्मदा । कानस गग मुद्रा धार आसन ध्यान अभ्यासी सदा । तप तेज दीपै कर्म जीपै नैव
पै परन्नणी । मुनिराज करुणासिंधु त्रिभुवन बंधु प्रणमो हित नणी ॥४३॥ ॥ (ढाल )॥ ॥ जिम तरु फूलै नमरो बैसै । पीमा तसुन नपाय । लेई रस आतम संतोषं । तिम मुनि गोचरी जायरे ॥ (न. सि०) ॥४४॥ पांच इंद्रीने जेनित जीपै । षट काया प्रतिपाल । संयम सतर प्रकार आराधै। बंदूं दीन दयालरे (ज. सिं० ) ॥ ४५ ॥ अढार सहस शीलांग ना धोरी । अचल आचार चरित्र । मुनिमहंत जयणायुत वंदी । कीजै जनम पवित्ररे (न०सि०)॥४६॥ नवबिध ब्रह्मगुपति जेपालै । बारह विह तपसूरा । एहवा मुनि नमीयै जो प्रगटै । पूरब पुन्य अंकूरारे (ज० सि०)॥४७॥ सोनातणी परै परिदा दीसै । दिन २ चढतै वानें । सं यम खपकरता मुनि नमिइं । देश काल अनुमानरे ॥ (न० सि०)॥ ४८॥ (ढाल) ॥ * ॥ अप्रमत्त जेनित रहै । नवि हरखै नवि सोचैरे।
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