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लघु नवपद पूजा.
॥ ॐ ॥ अथ तृतीय प्राचार्यपद पूजा ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ दोहा ॥ ॥ हिव आचारज पद तणी । पूजा करो विशेष ॥ मोह तिमिर दूरें हरे। सूजे नाव शेष ॥ १ ॥ ॥
॥ नतं सुहृदेहि पिया न माया । जंदिति जीवाणिह सूरि पाया । तुम्हा हु तेचेव सया महेह। जंमुरक सुरकाई हुं लहेह ॥ २ ॥ ॥
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॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥ सूरीण दूरीकय कुग्गहाणं । णमो णमो सूरसम प्पहाणं ॥ संदेशणा दाण समायराणं । अखंग बत्तीस गुणायराणं ॥ १ ॥ नमुं सूरिराजा सदा तत्त्वत्ताजा। जिनेंद्रा गर्ने प्रौढ साम्राज्यमाजा । षट्वर्ग व गितगुणें शोजमाना । पंचाचारनें पालवे सावधाना ॥ जवि प्राणिनें देशना देशकाले । सदा प्रप्रमत्ता यथा सूत्र आले ॥ जिके शासनाधार दिग्दंति कल्पा । जगत्ते चिरंजीवजो शुद्धजल्पा ॥ १ ॥
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॥ ॐ ॥ ( ढाल ) ॥ गुणबत्तीशे दीपता । पाले पंच आचारो रे ॥ जिन मारग साचो कहे | युगप्रधान जयकारोरे ॥ १० ॥ श्राचारिज पद वंदीयें । (कणी ) ॥ सारण वारण चोयणा । परिचोयण चौ शिक्षारे || नव्यजी व समजायवा । देवानें ते दिक्षा रे ॥ ० ॥ ११ ॥ जिनवर सूरज प्राथ म्या । परतिख दीपक जेहा रे ॥ सकल नाव परगट करे । ज्ञानमयी जसु दे हा रे ॥ ० ॥ १२ ॥ विधिशुं पूजा साचवे । ध्यावे निज हित जाणी रे || पावे लघुतर कालमा । प्राचारज पद प्राणी रे ॥ १३ ॥
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ ( श्लोक ) ॥ स्थापयामि ततः सूरीन् । दक्तिणेऽस्मिन् दलेऽमले ॥ चरतः पंचधाचारं । षत्रिंशत् सगुणैर्युतान् ॥ १ ॥ सूरीन् सदाचार रतांच सारा । नाचारयतः स्वपरान्यथेष्टम् ॥ योपसर्गेक निवारणार्थ । मभ्यर्च्चया म्य कृत गंध धूपैः ॥ २ ॥ ( श्री सूरिभ्योनमः) ॥ इति ॥ ३ ॥
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॥ * ॥ अथ चतुर्थ उपाध्याय पद पूजा ॥ ॥ ॥ * ॥ दोहा ॥ गुण अनेक जग जेहना । सुंदर शोभित गात्र || नव झाया पद रचियें | अनुभव रसनुं पात्र ॥ १ ॥ ॥
॥ ॐ ॥
॥ सुत्तत्थ संवेग मयेसु एणं । संनीर खीरामय विस्सुएणं । पीति जेते वझायराये। जाएह निचंपि कयप्पसाए ॥ ४ ॥ ॥
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