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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. नक्षी प० ॥ अनं० ॥ जन्म जरामृत्यु निवारणायः श्री मजिनेंद्रेभ्यो नि णिकल्याणके अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥ इति श्री पाठक बिजयविम लजीविरचित पांच क० पू० सं०॥ ॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥आरती ॥राग मालवी गोमी ॥ * ॥... ॥2॥ शुन्न आरती प्रजुकी नदारचित्तें करो नविक रसालरे॥ प्रथ मधूप सुगंधजिनकुं, नुखेवो जिननालरे॥१॥नाल निजकर तिलक सुंदर पहर पुष्प सुमालरे ॥ दक्षिणकर जिन राजजुके, कर आवर्त सुथालरे । शु० ॥२॥ यथासगते शुधनगते, करो दिल खुशियालरे ॥ द्रव्यनावें वि विधपूजा, नविकनाव विशालरे ॥ शु० ॥३॥ गुण अनंत महंत गावो, प्रजुपरम दयालरे ॥ जन्म सफलो करो नविजन, कहे पाठक बालरे॥ शु०॥ ४॥ इति आरती॥ ॥ॐ॥
॥॥अथ पांच कल्याणक पूजा विधिः॥2॥ ॥ ॥ प्रथम बिंबप्रतिष्ठामें ( तथा ) इसीवंत सेठ सककारादिककी तरफसें ( तथा ) संघ समुदायके तरफसेंजो पांच कल्याणकका नचव होय ( तबतो) विस्तार विधिसें एकेक दिनमें एकेक कल्याणकका नबव करे। पांच दिनमें पांच कल्याणक करै (और) जल यात्रा, चोवीस प्रकारी बीश स्थानक, सतर नेदी, नवपदजीकी एकेक दिन पूजा नलव विस्तार वि धिसाथ करावै । ऐसें १० दिनका नबव करै ॥ (यथा) पहले दिन पूठिया चंद्रवा तोरणादिकसें मंझपकी स्थापना करावे ॥१० दिग्पालाकों वलवाकुल दिरावे । जल यात्रादि नबव करके मंगल कलश थापन करै (इत्यादि)। दूशरै दिन चवन कल्याणकको उबव करै (जैसे) देवलोकसें चवके माताके गर्नमें आवै (तैसें ) नगवानकी माताको काष्टमई घरादिकमें पमि बिंबो स्थापन करै ( पीने ) ऊपर सेती काष्ट विमानमें लगवानको प्रतिबिंब स्थापन करके नीचै नतारै ( पीने) चवदै स्वप्नांको क्रमसें उतारै । माताके मंझपकेपा स रख्के । तीन नवकार गुणके नतारे (ओर) तीन नवकार गुणके स्था पन करें। (पीजे) एक (वा) २४ रत्न (अथवा) एक (वा) २४