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पंचकल्याणक पूजा॥ * ॥ राग कहरवा ॥ ॥
॥ * ॥ जिनंदवामिल गयो रे, दोय चरणं परध्या न ॥ शुक्ल मन गह गोरे ॥ जि० ॥ ज्ञायकज्ञेय अनंतनोरे, सबदरसी जिनचंद || सुरतरु सम जग वालहोरे, सेवत सुर नर इंद ॥ धर्ममैं लह लह्यो रे ॥ दो० ॥ १ ॥ चौदम गुण थानक करे रे, आतम वीर्य अनंत ॥ योग निरोधनकी क्रियारे, सूखम बादरकंत ॥ बंध सब टर गयो सरब संबर जयोरे ॥ दो० ॥ २ ॥ घन कर आत्मप्रदेशनोरे, कर शैलेशी कर्ण ॥ कर्म सकल दूरें कियारे, जीर्णवस्त्र जिम पर्ण मुक्ति पद जिम लह्यो रे ॥ दो० ॥ ३ ॥ ज्ञान क्रिया कर कर्म कोरे, य कर पर अनुबंध ॥ निजप्रातम रूपें जहां रे? शाश्वत सुख संबंध, सिध शुद्ध बुध थयो रे ॥ दो० ॥ ४ ॥ ॥
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॥ * ॥ (दोहा) कल अगोचर अगमगम, सिव नए सुविशुद्ध ॥ परमातम प्रनु परम पद, चिदानंद विरुद्ध ॥ १ ॥
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॥ * ॥ राग धनाश्री ॥ तेजतरणिमुखराजे ॥ ए देशी ॥ ॥ ॥ ॥ तेज तरणि सम राजे प्रभुजीको ॥ ते० ॥ एकसमयप्रजु करध गतिकर, मुक्तिमहल सुविराजे ॥ प्र० ॥ ते० ॥ १ ॥ सादि अनंत सदा शा श्वत वर अनंत महासुख बाजे ॥ अचल अगोचर प्रजु अविनाशी, सिस रूप बिराजे ॥ प्र० ॥ ते० ॥ २ ॥ निरुपाधिक निरुपम सुख प्रजुके क हिन शके कविराजे ॥ अजर अमर य अविकारी, सकलानंद सहा जे ॥ ॥ प्र० ॥ ते० ॥ ३ ॥ संवत नगणी से तेरो तर श्रावण शुदि पख राजे ॥ श्री जिनराज तथा गुण गाया, पंचमि दिवस समाजे ॥ प्र० ॥ ते० ॥ ४ ॥ श्रीविक्रमपुर नगर मनोहर श्रीसंघ सकल समाजे ॥ पंच कल्याणक पूजा प्रजुकी, कीनी हित सुखकाजे ॥ प्र ० ॥ ० ॥ ५ ॥ श्रीखरतरगच्छ ना यक लायक युगप्रधान पद बाजे ॥ जंगमगुरु नट्टारकवरश्री, जिनसौभाग्य सुराजे ॥ प्र० ॥ ० ॥ ६ ॥ प्रीत विलास धम्मसुंदर गणि अमृत समु द्र सुभ्राजे || पाठक विजय विमल प्रनुके गुण, गावत घन जिम गाजे || प्र० ॥ ते० ॥ ७ ॥ हंसविलाश प्रवरगणिवरकी प्रेरणया सुसमाजे ॥ श्रीजिनवरकी स्तवना कीधी, धर्म्मप्रभावन काजें ॥ प्र० ॥ ते ॥ ८ ॥