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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
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॥ अथ वस्त्र पूजा ॥
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॥ * ॥ दूहा ॥ वसन युगल पूजा हिवै । चनदमि मन नलसाय | करिय श्री जिनराजनी ॥ सकल जीन सुखदाय ॥ १ ॥ राग वेलानल | चित सेवा प्रभु चरण की क० ॥ चाल ॥ देववसन युग प्रतिलो | पल्लव सुकुमाल चंद्र किरण गण कजलो । प्रदद्भुत ज्योति विशाल ॥ दे० ॥ अखिल विबुध वर कमया ॥ चितधरि नगति अपार । बसन युगल मंकित करे | जिनवर बिंब नदार || दे० ॥ २ ॥ समकितधर हरितणी । करणी सुखकार । इणपरिदेस विरति करे। कुमति नल जलधार ॥ दे० ॥ ३ ॥ यदि शिव चंद्र पद कम लनी । सुख मधुर सनी आस । तद जवियण प्रतिदिन करौ । एपूजन शिव वास ॥ दे० ४ ॥ काव्यं ॥ वसन युग्म सुमंकित जूघनं । परमशांति सुधारस सघनं । जिनमिनंच महामिव सूच्चयै । र्वसन युग्म चयैन्नितरांमुदा ॥ ५ ॥ ॐ श्री वस्त्र युग्मं यजामहेस्वाहा ॥ इति चवदमी दिव्य वसन पूजा ॥ १४ ॥ ॥ * ॥ अथ ग्त्र पूजा ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ दूहा ॥ पूजत्रनी पनरमी । पुरित तमी दिनकार । ए पूजन करता धेरै । तीन बत्र सिरसार ॥ १ ॥ म्हांरै जलैरे कगो दिहाडी आजनोरे । एचाल ॥ जिनराज पूज जयकारिणी रे । सित चंद्र मंगल बत्रधारिणीरे ॥ जिगाडुरितांतर ताप निवारिणी । प्रति गहिर सिंधु जव तारिणी रे जि० ॥ ॥ सुमतीजन हर्ष बधारणीरे ॥ कुमती जन हरष विदारिणीरे ॥ जि० ॥ सहु जगजीन जन मन हारिणी रे ॥ कुमतीनी कुमति सुधारिणी रे ॥ जि० ॥ २ ॥ यातो त्रिभुवन यश विसतारिणीरे ॥ काल कुशल व्रतति श्रसारिणीरे ॥ जि०॥ सिरसो है तसु मनुहारिणी रे । करै नत्र पूज शिवचारिणीरे ॥ जि० ३ ॥ हरि जिम वि सुधाचारिणीरे || जवसायर पार नतारिणी रे || जि० ॥ नरकादि कुगति दुख मारिणी रे ॥ शिवचंद्र किरण अनुकारिणी रे || जि० ॥ ४ ॥ काव्यं सकल लोक शिवंकरतानरं ॥ कुमति घूक मत किति नास्करं । सुविमलातप वारण पूजया । ह्यलमलंकृत माप्त महंयजे ॥ ५ ॥ न ती उत्रं यजामहे स्वाहा ॥ इति त्र पूजा ॥ १५ ॥ ॥
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