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इकवीस प्रकारी पूजा.
॥ * ॥ अथ चामर पूजा ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ दूहा ॥ ॐ ॥ चमरपूज ए सोलमी । करियै नक्ति समाज । चमरयुगल करकमलधरि । पूजीजै जिनराज ॥ १ ॥ रागकेदारोगौडी ॥ कुंद किरण शशि कजलोजी देवा ॥ ए चाल ॥ धवलरयण मणि जातनारे ॥ बारहा ॥ वाला प्रति सुकुमालारे । चंद्रतरणि किरणोज्वलारे || वाल्हा ॥ विविध रयण जालारे ॥ १ ॥ प्रतिजिनदोयपासैखमारे वा० | सकल मर प्रतिपालारे । ऊपरैं जिन महाराजने रें ॥ वा० ॥ बींजे चमरविसालारे ॥ २ ॥ चामरयुग हरि बीजतारे ॥ वा० ॥ गत चामरता जहिस्यैरे । प्रमर अजर शिवपद जहीरे ॥ वा० ॥ सफल अमरता वहिस्यै रे ॥ ३ ॥ चमर पूजकरि सुरवरारे ॥ वा० ॥ अनुभव अम्रित चाखैरे । इणपरिश्रावकजनकरेरे ॥ वाहा ॥ सुमतिवंत श्रुतनाषैरे ॥ ४ ॥ काव्यं ॥ विशदचामर पूजन नूषितं ॥ विगतमार विकार मदूषितं । जिनगुणं विमलाखिल सद्गुणं । जयहरंचदधे हृदयांबुजे ॥ ५ ॥ तँ श्री श्री प्र० श्रामरयुगंयजामहेस्वाहा || इति चामरपूजा ॥ १६ ॥ ॥ 11 11
॥ ॐ ॥
॥ * ॥ अथ वाजित्रपूजा ॥ ॥
॥ * ॥ दूहा ॥ * ॥ पूज सतरमी मनरमी । करौजविक चितलाय । मधुरधुनि कीजीये। पूजनमें नलसाय ॥ १ ॥ रागकाफी ॥ अष्टापद गिरि याकरणकं ॥ ए चाल || द्रागिडिदि द्रागिडिदिकि धपमपधौधौं । सुरज मधुरस्वर वाजै । जो त्रिभुवन महाराजनजध्वं ॥ इमसुर पुंडु निगाजे । मनसु धावै होलाल ॥ श्री जिनवंदन करीये । जावे पूजी हो लाल ॥ जिनपद कमला वरी ॥ ताज कंसाल नेरि शंख ऊल्लरि । निज निज धुनिसेंबाजै ॥ ऊणण २ वलि खणण २ कर । ताल माल करवाजै ॥ ० ॥ २ ॥ वेणुवीणा दिक सुर संबंधी । सुर बाजित्र बजाया ॥ जूरि तूर व मिलित मधुरस्वर । सुरांणी गुणगाया ॥ म० ॥ ३ ॥ इणविध श्रावक पूजरचावै । विविध • बाजित्र बजावै । बहुविध नववन सरण तजीनें। पद शिवचंद्र सुपावै ॥ म ॥ ४ ॥ काव्यं ॥ विबुध वादित तूरवाश्रितं । प्रवरपूजन मंचित सत्पदः ।
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