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इकवीस प्रकारी पूजा.
६५९ अरचीजें जिनचंद्र चरणकज नमरहोय नविसारा ॥ में वारी जानं ॥ ज० ॥ जैसे कीट फीट हुय नमरी । ऐसाध्यान पगारा ॥ प्र० १ ॥ इह खंग सुन सरस पूंगफल । करलेई अमृत आहारा ॥ ० ॥ ० ॥ ० ॥ भगति युगति धरि जिनवर प्रागलि । ढोवै हरष अपारा ॥ मै०ढो० प्र० २ ॥ इम सुरनायकनी परि जेनवि । निरखी जिन दीदारा ॥ में० ॥ सुंदर करियै 'जिनपद पूजन | तजि जंजाल पारा ॥ में० ३ ॥ पूंगीफल पूजाफल सारा । चितधरि जवि मनुहारा ॥ में० ॥ पद शिवचंद्र नहो अवतारा । इम कहै प्रव चनसारा ॥ में० ॥ इ० प्र० ४ ॥ काव्यं ॥ सकल विश्वजनौघ वशंकरं । चरण पद्मनता खिल शंकरं । दिनकरं हरणोध तमोर्चिषां । जिनवरं वर पूंगफलैर्यजे ॥५॥ ॐ ० पूंगीफलं यजामहे स्वाहा ॥ इति बारमी पूंगीफल पूंजा ॥ १२ ॥ ॥ ॥ अथ कलश पूजा ॥ ॥
॥ * ॥ ( दूहा ) कलश पूज एतेरमी । सहु मनगमी सुहाय । एह पूजमें विकनो । पातिक दूर पुलाय ॥ १ ॥ राग ॥ दादा कुशल सुरिंद तुमद० ॥ ॥ चाल ॥ बारी जय जिनराज जय २ सकल देव सिरताज ॥ वा० ॥ जय २ त्रिभुवनजन महाराज | सोहै प्रनुपुर बार समाज ॥ वा० ॥ तुम प्रनु जगमें दीनदयाल | तुम प्रभु शरणागत प्रतिपाल ॥ वा ० १ ॥ कलशपूज प्रजुनी तिसार । करीयै लहीयै नवजल पार ॥ वा० ॥ गंगा मागध वजि वरदाम | तीरथ जलनरीया सुखधाम ॥ वा० २ ॥ रयण कनक मणिना अवदात । सुषमा मंदिर कलश सुजात ॥ वा० ॥ अखिल पुरंदर कर परिवार। प्रजु पुर धरियै हरष अपार ॥ वा० ॥ ३ ॥ जैसें कलश पूजसें इंद। पूजे जगनायक जिनचंद ॥ वा० ॥ तेसें श्रावक समकिति वृंद । जिनपति पूजे परमानंद ॥ वा० ४ ॥ कहै शिवचंद्र हृदय सुविशाल । प्रनुगुण समरण दीपक माल ॥ दा० ॥ धरि हरि पापतिमिर गत पार । जगति करौ जय निकर विदार। ॥ वा० ५ ॥ काव्यं ॥ कलशपुंज मनोरम पूजितां । जिनवरेंद्र ततिं घृतस न्मति । सुदृढि भक्तिजनैः कृतसन्निनं । प्रतिदिनं प्रयजेविजितस्पृहां ॥६॥ कलशं यजामहे स्वाहा ॥ इति कलश पूजा ॥ १३ ॥
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