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बारे व्रतपूजा विधि. ति रादि कलितके । धरि मन बचन अगारा । हांहो आ० प्र०२॥ संवत रस त्रिक निधि रात्रिकर । मासाश्विन मनुहारा । धवलपद प्रतिपद तिथि सोनन ॥ रजनीपति सुतवारा ॥ हांहो सु० ३ । प्र०॥ श्रीजिनरत्न सूरिसाखाधर । पाठकपद विसतारा । रूपचंदगणि चरण कमलमें । कुशलसार मधुकारा। हांहो म०प्र० अपर नामकरि चंदकपूरा । राचि जिनपति नुतिसा रा। लक्ष्मीप्रधान प्रवर गणिवरकी। प्रेरणया सुविचारा । हांहो०प्र० ५ इति ॥
॥ ॥ काव्य ॥ जंवाम्रादि फल बजैः ससुरसै गैधादिनि मिश्रितै। नूनं । द्रव्य हतु अवैश्व विधिना कुर्यात् प्रनोरर्चनं । नक्तः स प्रनु पूजनैक निरतो नूयोपि नूयो लन्ने । बर्मस्वर्ग तरोरकं सुखफला गारं वरं निर्मलं ॥१॥ नक्षी श्री परमात्मने अनंता० श्रीमजि अतिथि संविनाग व्रत उपदेशकाय फलं यजामहे स्वाहा ॥॥ ॥ ॥ इति श्री साधुकपूरचंदजीकृत वारह व्रत पूजा संपूर्णम् ॥ ॥ ॥४॥
॥॥अथ संक्षिप्त विधि ॥१॥ ॥ विशाल जिन मंदर अथवा धर्मशालामें त्रिगढ पीठ सम वसरण की स्थापना करै । जिसपर पूर्व दिशकी तरफ श्रीमहाबीर स्वामी, एवं चारे दिशें चार प्रतिमा स्थापन करै । आगे एक चौखूणा अठा चांदी पीत खादिकका पट्ट स्थापन करै । जिसपर एक वीचमें । ६ ऊपर । ६ नीचे एवं १३ साथिया करके १३ चावलोंका पुंज करै । ऊपर व्रतनाम युक्त १३ चिठी स्थापन करै । वामपासे कल्पवृद्ध, दहिणे पासे धजा अष्टमंग लीकादि सोनता अतिशय स्थापन करै । अब १३ चिठी लिखनेकी रीति ॥ ॥१॥नक्षी श्री सर्व धर्म मूल श्री मदर्शनायनमः॥ . ॥२॥नक्षी श्री स्थूल प्राणातिपात विरमण बतायनमः॥ ॥३॥ नक्षी श्री स्थूल मृषावाद विरमण व्रतायनमः॥ ॥ ४॥जी श्री स्थूल अदत्तादान विरमण व्रतायनमः॥ .. " ॥ ५॥ नक्षी श्री स्थूल मैथुन विरमण व्रतायनमः॥ ॥६॥ क्षी श्री स्थूल परिग्रह परिमाण विरमण व्रतायनमः॥ ॥७॥जी श्री दिशा परिमाण गुण व्रतायनमः॥