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सिधचक्रममल पूजा विधि.
७१७ निनँदै । श्चारित्रं चारु पंचधा। संस्थापयामि पूजार्थ । पत्रैह नैश्ते क्रमा त् ॥ १३ ॥न जी श्री सम्यग् चारित्राय नमः स्वाहा ॥ ८॥ नैश्त कूणकी तरफ चारित्र पदकी स्थापना पूजा करै ॥ इति ॥ * ॥( पीछे ) रकेबीमें ५० मोती, श्वेतगोलो, श्वेत धजा आदि, सर्व सपेदद्रव्य हाथमें लेके तप पदको श्लोक बोलके चढावै ॥ (श्लोकः ) विधा प्रादशधानिन्नं । पूतेपत्र तपःस्वयं । निधाययामि नत्त्यात्र । वायव्यां दिशि शर्मदं ॥ १४ ॥ नही श्री सम्यग् तपसे नमः स्वाहा ॥ ९॥ वायव कूणकी तरफ तप पदकी स्थापना पूजा करे ॥ इति ॥ * (अथ अर्घ ) ॥ निःस्वेदत्वादि दिव्या तिशय मयतनून् श्री जिनेंद्रान् सुसिघान् । सम्यक्तादि प्रकृष्टाष्टक गुणदा चार साराश्वसूरीन् । शास्त्राणि प्राणिरदा प्रवचन रचना मुंदराण्यादि संझं। स्तत्सिध्यै पाठकानां यतिपति सहिता नर्चयाम्यर्घदानै ॥ १५ ॥ इत्थमष्ट दलं पद्मं । पूरये दर्हदादिनिः । स्वाहांत प्रणवाद्यश्च । पदैविघ्न निवृत्तये ॥ १६ ॥ क्षी श्री अज असिमानसा सम्यग् दर्शन झान चारित्र तपसे भ्यो झी श्री अहं परमेष्टिन परमनाथ परमदेवाधिदेव परमार्हन् परमानंत चतुष्टय । परमात्मने तुभ्यं नमः ॥ (इति मूलमंत्रः ) ॥ इति सिघचक्र प्रथमवलय मूलपूजा विधि ॥४॥
॥अथ द्वितीय वलय पूजा॥॥ ॥ ॥ प्रथम वलयमें एक मध्य, चार दिश, चार विदिश, एवं अष्टदल कमलके आकार नवकोठा मंमलके मध्यनागमें होय । ननोंकी पूर्वोक्त प्रकार पूजा करै ॥ ( पीछे ) दूसरा वलयमें चूमीके आकार १६ कोठग: होय । ( जिसमें ) एकेक कोठाके अनंतर आठ कोठामें, अवर्गादि आठ वर्ग स्थापन करै । ( और ) एकेक कोग बीचमें खाली रहा है ( नसमें) अनाहत पद (नशी णमो अरिहंताणं ) ऐसा पदस्थापन करै ॥ (पीने) एक रकेबीमें, मिश्री लवंग ( तथा ) एक रकेबीमें मोटी दाखां लेके खमा रहै। अनाहत पदमें मिश्री, लवंग, चढावे ॥और आठ वर्गमें दाषा चढावे ॥ (यथा)क्षी णमो अरिहंताणं ॥ मिश्री लवंग चढावै ॥ १ ॥ अपा इईनक रु ऋल लु ए ऐ औ अं अः ॐक्षी स्वर वर्गाय नमः ॥