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रत्नसागर. लंता जे नरजाय । पातिक नूको थाय । पशु पंखी जेइण गिरि आये। जव त्रीजे ते सिघज थावे । अजरामर पद पाये। जिनमतमें शेजो वखाण्यो। ते में आगम दिलमांहे प्राण्यो । सुणतां सुख नराण्यो॥२॥ संघ पति जरत नरेसर आवे । सोवन तणां प्रासाद करावे । मणिमय सूरति गये। ना निराया मरुदेवी माता । ब्राह्मी सुंदरी बहेन विख्याता । मूर्ति नवाएं माता गोमुखनें चकेसरी देवी। शेढंजय सार करे नित्य मेवी । तणगह ऊपर हेवी श्रीविजय सेन सूरीश्वर राया। श्री विजयदेवसूरी प्रणयी पाया। षन दास गुणगाया ॥४॥इति ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ सीमंधर जिन स्तुति॥ ॥ ॥ महाविदेहखेडे सीमंधर स्वामी सोनाना सिंहासणजी । रूपानां कोशीशा विराजे रत्नना दीवा दीपेजी । कुंकुमवर्णी गहुंली विराजे मोतीना अदत सारजी । त्यां बेग सीमंधर स्वामी बोलै मधुरी वाणीजी ॥१॥ केशर चंदन नरीरे कचोली । कस्तूरी वरासजी । पहलीरे पूजा अमारीरे होजो कगम ते परनातजी॥॥
॥ ॥ॐ॥ अथ सामायक लेवा विधि ॥ ॥ प्रथम नंचे आसनें पुस्तक प्रमुख मुंकीनें। श्रावक,श्राविका,कटा सणुं । मुहपत्ती, चरवलो लई । शुध बस्त्रपहरी । जग्या पुंजी। कटासण ऊपर बेशी, मुहपत्ती मावा हाथमा मुख पासें राखी । जमणो हाथथापना जीसन्मु ख राखी। एक नवकार गणी (पंचिंदिन) कही । इच्छामि खमासमण देई। हरि या वहिया। तस्सनत्तरी । अन्नत्थ ऊससिएणं । कहै। एक लोगस्सनो (अथवा) चार नवकारनो कानसग्ग करै (पारी) प्रगट लोगस्स कहै । खमासमण देई । इलाकारण संदिसह जगवन् सामायक मुहपत्ती पमिलेहुँ । इई ॥ इमकही ।मुहपत्ती,तथा,अंगनी पमिलेहणना पंचाश बोल कही। सुहपत्ती पमिलहीऐं। पनी खमासमण देई । इलाकारण संदिसह जगवन् सामायक संदिस्साचं ॥ इडं ॥ वली खमासमण देई । इला० ॥ सामायक गर्नु । ढं। एम कही। बे हाथ जोमी । एक नवकार गणी । इछकार भगवन पसाय करी सामायक दंभक उबराबाजी। पली शुरु भमुख बमेल करोमि