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श्री शिखरजीकोरास(वा) गौतमरास. - २३७ ता। महिमा थश्यअपार जी। तिणए तीरथ प्रगट्यो जगमें । मुक्तितणो दातार जी॥७॥ जय० २॥ नहरी पालै जेनर नावै । लेटै सिखर गि रिंद जी। ते नर मनबंडित फल पामें। ए सुरतरुनो कंदजी॥८॥जय०२॥ बहुबिध संघ तणी करै जक्ति । संघपति नांम धराय जी । सफल करै संपद निज पामी । जेहनो सुजस सवाय जी ॥ १० ॥ जय० ॥ परनव सुरनर संपद पामें । जात्रा करै गहगाटजी । साधर्मी बबल मुनि नक्ती । पूजा नव थाट जी॥ ११ ॥ जय० ॥ टुक टुंक पर चरण प्रचूना। पूजो नविजन नाव जी । ध्यान धरो जिनवरनो मनमें । आनंद अधि क नाव जी॥१२॥ ज० ॥ रास रच्यो श्रीसिखर गिरिनो। सुणतां न वनिधि थाय जी। तिणए नविजन नाव धरीनें । सुण ज्यो मनथिर लाय जी॥१३॥ ज०॥ खरतर गडपति महिमा धारी । कीरति जग विख्यात जी । जय श्रीजिन सौनाग्य सूरीसर। अमृतबचन सुगात जी ॥ १४ ॥ ज०॥ तासुपसायै रासरच्यो ए । अमृत समुद्रनें सीस जी । बालचंद्र निज मति अनुसारै । सोधो विबुध जगीस जी॥१५॥ ज०॥संवत नगणीसै सित मोत्तरे। सुदि बैशाष सुढाल जी । रास अजीमगंज मांहि कीलो । नण तां मंगल माल जी॥ १६ ॥ ज०॥ ॥ ॥ ॥ ॥॥ इति श्री सिखरजीको रास संपूर्णम् ॥ २०१॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ अथ गोतम रास लिख्यते ॥॥ ____॥ बीरजिणेसर चरण कमल कमलाकय वासो। पणमवि पनणिसु सामि साल गोयम गुरु रासो । मण तणु वयणे कंत करवि निसुणहु नो नविया। जिम निवसै तुम देह गेह गुण गण गह गहिया ॥१॥जंबूदीव सिर नरह खित्त खोणी तल मंगण । मगहदेस सेणियनरेस रिनदल बल खंम '। धणवर गुबर गाम नाम जिहां गुण गण सजा । विप्पवसै वसु नुइ तत्थ तसु पुहवी नजा॥२॥ ताणपुत्त सिरि इंदनूय नूवलय पसिघो । चवदह विजा विविहरूव नारी रस लुचो । विनय विवेक विचार सार गुण गणह मनोहर । सात हाथ मुप्रमाण देह रूवहि रंगावर ॥ ३ ॥ नयण वयण कर चरण जणवि पंकजालपामिय । तेजहि तारा चंद सूरि आकास मामि