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मोहनगुणमाला, प्रथम नाग. करै। परंतु नगवन्तके अतिशयसें । च्यारुदिशे । बारैई परषदाकों । अपणेसन्मुख नपदेश देता मालुम होय ॥६॥(उनी ७) आकाशमें देव कुंकुनी बाजित वाजे ॥ ७ ॥ (रातपत्रं ) जगवन्तके विहार काले। वा स्थिति कालै । हमेसां मस्तकपर । तीन नत्र रहै ॥८॥ (यह आठ गुण देवगणके किये होय) ऐसे अरिहंत । देवाधिदेव । चौतीस अतिशय विराजमान । पैतीस वचनगुण शोनित । एक हजार आठ लहणालंकृत। अगर दूषण रहत । शांत दांत । कृपासागर । त्रैलोक्यनाथ । जगत्रयके गुरु (वर्तमानकालै ) महाविदेह खेत्रे । केवलज्ञान । केवलदर्शनसें। लोकालोकका नाव देखते थके । पृथ्वीमंडलपर भव्य जीवुके मनोरथ पूरण करते थके । बिचरते है (ऐसे ) अनंतगुणें सुसोनित । अरिहंत देव श्रीसंघमें सदा मंगल करो ॥१॥ (तथा सिद्धाश्च सिद्धि स्थिता) (दूसरै पदै ) सिद्ध महाराजको नमस्कार हुवो । (सिद्ध महाराज कैसे है ) अष्ट कर्म काष्टकों । शुक्लध्यान रूप अग्निसें नस्मकर सिद्धगतिकों प्रातनये (ऐसे ) अनंत ग्यान । अनंतदर्शन । अनंत चारित्र । अनंत तप। अनंत वीर्यसंयुक्त । जन्म जरा मरण रोग सोक नयादिकसे विप्रमुक्त । चवदै राजलोकमें सब जीवोंके मनोगत नाव । एक समयमें जाणते थके । देखते थके पिण आत्मगुणां में मग्न रहे है (ऐसे ) सिद्ध महाराज श्रीसंघमें सदा मंगल करो ॥ २ ॥ (आचार्या जिनशासनोन्नति कराः) (तीसरा परमेष्टि ) श्रीआचार्य महाराजकों नमस्कार हुवो। (सो कैसे है ) (उत्तीस गुण करी विराजमान । मुक्तिमार्गके साधक । कर्म शबेके बिराधक । अबुध जीव प्रतिबोधक । कमागुण भंडार । समदृष्टी। तरण तारण। धर्मके धोरी । जिन सासनकी नन्नतिके करण हार ( ऐसे) पर नपगारी आचार्य महाराज श्रीसंघ में सदा मंगलकरो॥३॥ (पुज्या नपाध्यायका । श्रीसिद्धांत सुपाठका (चौथा परमेष्टि । श्रीनपाध्याय महाराजकों नमस्कार हुवो। (सोकैसे है ) द्वादशांगी सुत्रार्थके जाणकार । नय निदपा गमां पर्याय युक्त । सिद्धांतको पढाणेवाले । झानचह्न देणेवाले । (ऐसे) २५ गुण करी बिराजमान । श्रीनपाध्याय महाराज श्रीसंघमें
थके ।
लोकमें सब जीवारा मरण रोग सोमन चारित्र।