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श्रीदादाजीकी वृद्ध अष्ट प्रकारी पूजा. ७९१ क्रमण के मूं । हाथसें नगय पात्र ढांक दीन यूं ॥ ढां० ६ दी० ॥ दामनी अमोल बोल सिघ राज तूं । देनं वरदान गेम बंध कीन क्यूं । बं० ७॥ दत्त नाम जपत जाप करत नांह चूं । फेर में पडूंगी नांह गेम दीन;॥गे० ८ दी०॥ करोगे निहाल आप पाव पलकनूं । रामशघिसार दास चरण गहलूं ॥ च० ९० दी०॥श्लोक ॥ मलय चंदन केशर वारिणा । निखिल जाडय रुजातप हारणा । शकल। जी श्री श्री जिन दत्त सूरी गुरो के शर चंदनं निर्विपामिते स्वाहा ॥२॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥* ॥ अथ तीसरी पुष्प पूजा॥ ॥ ॥ ॥दोहा॥ चंपा चमेली मालती । मख्वा अरु मचकुंद । जो चाढे गुरु चरण पर । नित घर होय आनंद ॥१॥ ॥ ॥ ॥ ॥
* ॥ नींद तो गई वादीला मारी । ए चाल ॥राग मांग ॥ * ॥ ॥ * ॥ गुरु पर तिख सुर तरु रूप सुगरु शम दूजो तो नही । दूजो तो नही रे सुमति जन दूजो तो नही । गुरु परतिख सुर तरु रूप सु गुरुनें पूजो तो सही ॥ए आंकणी ॥ चितोम नगरी वज्र थंन मै। विद्या पोथी रहीरे॥ सु०॥ हेजी मंत्र जंत्र विद्या में पूरी गुरु निज। हाथ गृही ॥गु० गुरुपर० ॥ १॥ पुरनोणी महाकाल के । मंदिर थंन कहीरे सुम० । हेजी शिद्धशेन दिन करकी पोथी । विद्या सरब लहीरे सु० वि० गुरुप० ॥२॥ नकोणी व्याख्यान वीच मे । श्राविका रुप गृहीरे । सु० श्रा० ॥ हेजी जोगणीयां उलणे कुं आई, सब कू खील दई। सु० गु ३॥ दीन होय जोगणीयां चोसठ । गुरु की दाश नई रे। सु० गु०॥ हेजीशात दीया वरदान हरख सें, पसरया सुजस मही ॥ प.गु० ४॥ पुष्पमाल गुरु गुण की गूंथी। चाढो चित्त चहीरे । सुचा० । हेजी कहे रामऋद्धिशार सुजश की बूंटी आप दई । बूं० गु० ५ । श्लोक । कमल चंपक केतकी पुष्प कैं। परि मलाश्त् षट् पद बंद कै । शकल० ॥जी श्री श्री जिन दत्त पुष्प निविपामिते स्वाहाः।३। .....
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