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रत्नसागर. ॥॥अथ एकादशीनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ * ॥शाशन नायक वीरजी प्रजुकेवल पायो । संध चतुर्विध थाप वा। महसेन वन आयो ॥१॥ माधव सित एकादशी । सोमल जिया इंद्रचूति आदें मल्या। एकादश विग्य ॥२॥ एकादशसें चतुगुणा । तेह नो परिवार । वेद अर्थ अवलो करे। मन अनिमान अपार ॥३॥ जीवा दिक संशय हरीए । एकादश गणधार । वीरें थाप्या वंदियें। जिन शासन जयकार ॥ ४॥ मति जन्म अर मति पाश । वर चरण विलाशी ॥ष जअजित सुमति नमी । मली घनघाति विनाशी ॥ ५ ॥ पद्मपन शिव वास पास। नवनवना तोडी। एकादशी दिन आपणी। रिछि सगली जो डी॥६॥ दश खेने निहुँ कालनां । दैदशै कल्याण । वरस अग्यार एका दशी । आराधो वर नाण ॥७॥ अगीयार अंग लखावीयें । एकादश पाग । पूंजणी ठवणी विंटणी । मसी कागल काग ॥ ८॥ अगीयार अनत गंमवा ए। वहो पमिमा अगियार । खिमाविजय जिन शासनें। सफल करो अवतार ॥ ९ ॥ इति ॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ सीमंधर जिनवर सुखकर साहेब देव । अरिहंत सकलनी। जाव धरी करूं सेव । सकलागम पारग गणधर नाखित वाणी । जयवंती आणा ज्ञान विमल गुणखाणी ॥१॥ ॥ ॥ ॥et ए थुई चार वखत पण कहेवायळे ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ श्री सीमंधर जिनस्तुति॥॥ ॥ ॥ श्री सीमंधर देव सुहंकर । मुनि मन पंकज हंसाजी। कुंथुअर जिन अंतर जनम्या तिहुश्रणयश परशंसा जी। सुबत नमि अंतर वरदी हा शिक्षा जगत निरासेंजी । उदय पेढाल जिनांतरमा प्रजु जाशे शिव वहु पासें जी ॥ १ ॥ बत्रीश चनसहि चन्सठि मलिया इग सय सहि उकिटा जी ॥ चन अम अम मली मध्यम कालें वीस जिनेश्वर दिहा जी। दो चउ चार जघन्य दशजंबू धायई पुख्खर मारें जी॥ पूजो प्रणमो आचारांगें प्रवचन सार उघारें जी ॥ २ ॥ सीमंधर वर केवल पा मी जिनपद खवण निमित्तेजी ॥ अर्थनी देशन वस्तु निवेशन देतां सु
बहू पास
चन अम
जंबू धाय
पर वर केवल