________________
नवपद पूजा आरती.
७३१ ॥ सुसंबर मोह निरोह सारं । पंचप्पयारं विगयाइ यारं । मूलोत्तराणेग गुणं पवित्तं । पालेह निचपिहु सच्चरित्तं ॥ ८॥॥ ॥8॥
॥ ॥ बंद ॥ आराहियाखमिय सकियस्स । णमो णमो संयम वीरिय स्स।सझावणा संग बिवाढियस्स । निवाणदाणाइ समुऊयस्स ॥१॥ वली ज्ञानफल चरण धरिये सुरंगें । निराशंसता प्राररोध प्रसंगें ॥ नवां जोधिसंतारणे यानतुल्यं । धरुं तेह चारित्र अप्राप्तमूल्यं ॥१॥ हुवे जास महिमाथकी रंक राजा। वली प्रादशांगी जणी होय ताजा ॥ वली पाप रूपोपि निःपाप थाये । थई सिघ ते कर्मनें पार जाये॥२॥ * ॥
॥ (दाल) सर्व विरति देशविरातिथी । अणागार सागारीरे॥ जय वंतो थावो सदा । ते चारित्र गुण धारीरे॥ २७॥चारित्रपद नित वंदीयें। (ए आंकणी ) षट्खंड सुख तजि आदरे । संयमशिव सुखदायीरे ॥ सत्तर नेदें जिन कह्यो । ते आदरिये नाईरे ॥ चा० ॥ २८ ॥ तत्त्वरमण तसु भूल ने । सकल आश्रवनो त्यागीरे॥ विधिसेती पूजन करे । नाव धरी वमन्नागीरे॥चा०॥२९॥॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ ॥॥श्लोक ॥ सामायिकादिनिर्नेदे । श्चारित्रं चारुपंचधा ॥ संस्थापया मि पूजार्थं । पत्रे हि नैश्ते क्रमात् ॥१॥नक्षी सम्यग्चारित्राय नमः॥८॥
॥* ॥ अथ नवम तपपद पूजा॥ * ॥ * दोहा॥ कर्मकाष्ट प्रति जालवा। परतिख अगनिसमान ॥ ते तप पद पूजो सदा । निर्मल धरिये ध्यान ॥॥ ॥ ॥ ॥
॥वशं तहानिंतर नेयमेयं । कयाइपुग्नेय कुकम्मन्नेयं । उक्खक्ख यत्थंकय पावनासं। तवं तवेहा गमियं निरासं॥९॥ण्याइं जेकेवि नवप्पयाई। आराहियंतिफल प्ययाइं। लहंति ते सुरक परंपराणं । सिरि सिरीपाल नरेसरुव ॥ १०॥
॥ ॥
॥ ॥ ॥ॐ॥ कम्मदुमोनमूलण कुंजरस्स। णमो णमो तिवतवोनरस्स ॥ अ रोग लघीण निबंधणस्स । उस्सङ अत्थाणय साहणस्स ॥१॥ त्रिका लिकपणे कर्म कषाय टाले । निकाचितपणे बांधियां तेह बाले॥ कहूं तेह तप बाह्य अभ्यंतर उन्नेदें । दमा युक्त निर्हेतु ान दे॥ हुवे जास महि