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रत्नसागर.
तरु सम मिलियो फलदाई ॥ (आ.)॥५॥ बंबित पूरण संकट चूरण । सहु नवि मात पिता बरदाई ॥ (आ०) ॥६॥ कलिकत्तापुर मंमन साहि ब। कुशल करो मोहन गुणदाई ॥(आ०)॥७॥ इति पदम् ॥ * ॥
॥ ॥ अथ देशना वधावा संग्रह | ॥ ॥ ॥ वीरजीदीये देशनारे। त्रिनुवन जन हितकाज । परषद वारने आगलेरे । जगजीवन हितकाज ॥वी०॥१॥प्रनू मुख पद्म मनोहरूरे। जि हां वांणी मकरंद । नव्यमधुरतो नावथी रे। पांनकरै आनंद ॥ वी० २०२।। अजर पणुं जगसंपजैरे । अमृतध्यान पसाय । प्रजू वचनामृत पानथीरे । अ जर अमर पद थाय ॥ वी० २०३॥ मधुर पणे मनमोहनीरे । अनुपम वाणि नदार । सांगले नव्यलहै सहीरे । जिन परनाव विचार ॥ वी० २०४ ॥ जिहां षद्रव्य विचारणारे । नय निक्षेप अनंग । चोविह धर्म प्ररूपणारे। स तनंगी अतिचंग ॥ वी० २२५॥शासननायक जिन वरूरे । अनुपम अमृत धार। जलधरनी पर वरशतारे। विचातिक हितकार। वी० २०६॥ श्रीजिन लान पसायथीरे। जिन आतम हितजाण । वाचक अमृत धर्मनोरे । शीश जणे कल्याण ॥ वी० २०७॥ इति देशना ॥॥ ॥ॐ॥
॥॥ पुनः देशना लि०॥॥ ॥8॥ गुणनिधि श्री जिनचंद मुणिंदा। मुखसोहै पूनमचंदा। मोह्या सब सुरनरवृंदा ॥१॥ सुगुरु ह्मारा देशना हिवदीजै। थारी देशना सुण मनरी । मु०॥ दिनकर परकास सवायो । जूमंगल ऊपर गयो । कमलादि सकल मन नायो।। सु०॥२॥ वेलान्ल देव गंधार । वलि भैरव राग मकार । गायन गावै सुखकार ॥ सु० ॥३॥ पंचसबद गहिर ध्वनि गाजै । जिनवर घर कालर वाजै। सहु सऊथया धर्म काजै॥ सु० ॥४॥हिव बहिला पा ट पधारो। श्री संघना कारज सारो । मधुरै स्वर वचन नचारो॥ सु० ॥ , ५॥ सुण वीनती वचन विशेष । गुरु आपे धर्म उपदेश । टालो नविकोमि कलेश ॥ सु० ॥ सदगुरुनी मीठी वाणी । उपदेश सुणो विमाणी। सुण तां मन अतिहि मुहाणी ॥सु०॥ ७॥ गुरुमतपौ ज्युं शशि सूर । दिन २ प्रति