________________
१०७
राई प्रतिक्रमण सामायकपारण विधि. कर (तेइम) खमासमणदेई । इलाका० सं० । पमिलेहण संदिस्सान (गुरु कहै संदिस्साएह) बीजै खमासमणे । इहा० सं० न० । पमिलेहण करूं ( गुरु कहै करेह) पछै । कही। मुहपत्ती पमिले है । (इमहीज दोइ खमासमणे । अंग पमिलेहण संदिस्सा । अंग पमिलेहण करें (कही) धोतियो कणदोरो पमिलेही । खमासमणदेई । इहकार नगवन् पसान करी पडिलेहण पडिलेहा वोजी (इम कही) थापनाचार्य पडिलेही। राखै (अने) जो गुर्वा दिक थापनाचार्य पमिलेहै । तोपिण । खमासमण देई आग्यामांगै । पछै खमासमण देई । इला० सं० न० । मुहपत्ती पडि लेहुँ (गुरुकहै पडिलेहेह) पड़े इई कही। मुहपत्ती पडिलेही । दोय खमासमणे श्बाका० सं० न० । नही पडिलेहण संदिस्साऊं । करुं (कही) कंबल वस्त्रादि पडिलेहै । पढे । पोसहशाला प्रमार्जी । काजो विधमुं परठी । खमासमण देई । इरियावही पडिक्कमें (एमूलबिध जाणवी)॥ॐ॥ इतरी स्थिरतानहुवै तो पिण दृष्टि पडिलेहण करवी । हिवणां पिण प्रायें इमहीज करता दीसै॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ * ॥ हिवै सामायक पारणेंकी विधि कहै॥* ॥ ॥॥ प3 सामायक पारे । १ खमासमण देई । मुहपत्ती पडिलेहै फेर खमासमण देई इबा० सं० ज । सामायक पारु (गुरु कहै पुणोवि कायबो) पचै यथाशक्ति कही। वले खमासमण देई (कहै ) इचाका सं० न० । सामायक पारेमि ( गुरु कहै यारोनमोत्तव्वो) पत्रे तहत्तिक ही। अर्ज नम्र ऊनो थको। तीननवकारगुणी । नीचो गोमालीय बैसी । मस्तक नमावी । जयवंदसन्ननदो ( इत्यादी गाथा कहै)(अथवा) पहिला सामायक पारी । पत्रै पडिलेहण करै ( इहां ) यथायोग्य अवसरे गुरूने सुहराई पूजे (ते इम एक खमासमण देई कहै । इहकार नगवन् मुहराई, सुखतप शरीर, निरावाध, संयम यात्राः सुखें निरवहै जी, पूज्यजी साता (इत्यादि पूरी) बीजी खमासमण देवै । श्रीजिन पति मुरि जीनी समाचारीमें इम कह्यो ॥१॥ति सामायक पारणविधिः॥॥