________________
-A
---
रत्नसागर. श्रीवीर कृत उम्मासीतप चिंतवै (जो) उम्मासी तपन जाणे (तो) ६ खोगस्सा अथवा, २४नवकारनो कावसग्ग करै ऐसी प्रवर्तीहै । पजे जे पच्चक्लाण करखो हुवे (ते) हियामांहि धारी। कानसग पारी । लोगस्स कही। ककडूबेसी। मुहपत्ती पडिलेही। बे वांदणा देई । सकल तीरथ नामलेई । नमस्कार करी (कहै) इह कार नगवन पसान करी पञ्चक्खाण करावो जी (प) सुरु मुखें पञ्चकखाणकरें । गुरु अन्नावै थापना समहें (अथवा ) साधर्मी मुर्खे पचक्खांण करे (प.) इलामो प्राणुसहिं कही, बैस (तिवारै ) गुरु १ शुई कह्यां पढ़। मस्तकै अंजली करी । नमो खमासमणाणं ! नसो क्षेत्सि था कही ॥ संसार दावानल इत्यादि (अथवा) नमोस्तु वर्ष मानाय । त्यादि (अथवा) पर समय तिमर ( इत्यादि तीन गाथा लणी ) शक्रस्त व कहै । पचै । कनो थई । अरिहंत चेईयाणं करेमि कानसग्गं । वंदणवत्ति आए (इत्यादि कही) कानसग्ग मांहें १ नवकार चिंतवी। एक श्रावक प्रथ म कानसग्ग पारी । नमो सिधा कही । एक गाथा स्तुति कहै। बीजा सर्व कानसग्ग मांहें रह्या सुणे (प) णमो अरिहंताणं कही। कानसग्ग पार । इम आगै पिण जाणवो । (प) लोगस्स कही। सबलोए अरिहंत देहाणं । बंदणवत्ति । अन्नत्थू० । (इत्यादि कही) १ नवकारनों का नुसरग करी (पारी) बीजी स्तुति कही। सिधाणं बुधाणं कहै । (प.) वे यावच गराण । अन्नत्थू० कही । १ नवकारका० करी। (पारी) नमो ति सिधा कही । चौथी स्तुति कही । (बैसी.)। नमोत्थुणं कहै । घले तीन खमासमणे । पूर्वोक्त रीतें । आचार्य । नपाध्याय । सर्व साधू वांदे। इति प्रजाती पमिकमण विधिः ॥ * ॥ ॥ * ॥ 8॥ का ॥ ॥ पुनःइतना विशेष है॥
॥ इतनी विधि कियां पाळे थिरता हुवै (तो) नत्तर दिशे । सीमंधर स्वामी सांहमां बैसी । कम्म नूमी २ ( इत्यादि ) संपूर्ण चैत्यबंदन करे (प्रति ) अरिहंत चेईयाणं करेमि कानसम्गं । वंदणवत्ति अन्नत्थू० कही। १ नवकार चितवी ( पारी) सीमंधरस्वामीनी स्तुति कहै । इम हीज थिरता हुवै (तो) श्रीसिचाचलजी नो चैत्यवंदन करे ।। पले पमिलेहए