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जैती संयुक्त नवपद नलीकरण विधि. ३३३ २७॥श्रोत्रंद्री धारणा मति०॥ २८॥ मनो धारणा मति ज्ञानायनमः॥ २९॥ अदर श्रुत ज्ञानाय नमः॥ ३०॥ अनदर श्रुत झानाय नमः॥ ३१॥ संझी श्रुतज्ञानाय नमः॥ ३२॥ असंझी श्रुतज्ञानाय नमः॥ ३३॥ सम्यक् श्रुतग्यानाय नमः॥ ३४॥ मिथ्या श्रुतग्यानाय नमः॥ ३५॥ सादि श्रुतग्यानाय नमः॥ ३६ ॥ अनादि श्रुतग्यानाय नमः॥ ३७॥ सपये वसति श्रुतग्यानाय नमः॥ ३८॥अपर्य वसति श्रुतग्यानाय नमः॥ ३९॥ गमिक श्रुतग्यानाय नमः॥ ४०॥अगमिक श्रुतग्यानाय नमः॥ ४१॥ अंग प्रविष्ट श्रुत०॥ ४२ ॥ अनंग प्रविष्ट श्रुत०॥ ४३॥ अणुगामि अवधिग्यानाय नमः॥ ४४॥ अणूणगामि अवधिग्यानाय नमः॥ ४५ ॥ वट्टमान अवधि०॥ ४६॥हीयमान अवधि०॥ ४७॥ प्रतिपाती अवधि०॥ ४८॥अप्रतिपाती अवधि०॥ ४९॥ रुजुमति मनः पर्यवग्यानाय नमः॥ ५०॥ विपुलमति मनः पर्यवग्यानाय नमः। ५१॥लोका लोक प्रकाशक श्री केवलग्यानाय नमः॥
॥ ॥ इस रीतसे (५१) नमस्कार करै । (खमा होके ) अन्नत्थ ऊससिएणं० (इत्यादि कहै ) (५१) लोगस्सका कान्सग्ग करिके । प्रगट :