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कार श्री कुंथुजिन चैत्यप्रतिष्टा स्तवन
॥ * ॥ ढाल पांचमी ॥ * ॥
॥ ॐ ॥ वीर जिणेसर इम न रे । बेठी परखदा बार | मे प्राणिया रे । जिम पामो जव पाररे । धर्म हीये धरो ॥ १ ॥ र प्रकारो रे । नवियण सांगलो । धर्म मुक्ति सुख कारो रे ॥ ( एकणी ) धर्मथकी धन संपजे रे । धर्मथकी सुख होय । धर्मथकी आरति टलै रे । धर्म समो नहिं कोयरे ॥ धर्म० ॥ २ ॥ दुर्गति पकतां प्रा
या रे । राखै श्री जिनधर्म । कुटुंब सहुको कारीमुँरे । मत भूलो नवि जर्म रे ॥ धर्म० ॥ ३ ॥ जीव जिके मुखिया हुआरे । वली होवे होसी जेह ते जिनवरना धर्मथी रे । मत कोई करो संदेह रे ॥ धर्म० ॥ ४॥ सौल बासठ सरे । सांगानेर मकार ॥ पद्मप्रभु सुपसान्तेरे। एह
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धर्म करो तु धर्मना चा धर्म• ॥
यो अधिकार रे || धर्म० ॥ ५ ॥ सोहम सामी परंपरा रे । खरतर गद्य कुलचंद | युगप्रधान जग परगडोरे । श्री जिनचंद सूरीस रे ॥ धर्म ● ॥ ६॥ तास शिष्य प्रतिदीपतो रे। विनय वंत जशवंत । आचारिज चढती कला रे। जिन सिंह सूरिमहंत रे ॥ धर्म० ॥ ७ ॥ प्रथम शिष्य श्री पूज्यनारे | सकलचंद तस शिष्य । समयसुंदर वाचक जणें रे । संव सदा सुजगीस रे ॥ धर्म० ॥ ८ ॥ दान शील तप भावना रे । सरस रच्यो संवाद । जणतां गुणतां नाव रे। कषि समृद्धि सुप्रशादो रे ॥ धर्म० ॥ ९ ॥ ॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ # ॥ चक्रेश्वरी देवी आरती ॥ # ॥
॥ * ॥ जय जय रति देवी तुमारी । नित्य प्रणम् हुँ तुम चरणारी जय० ॥ १ ॥ श्री सिधाचलगिरी रखवाली । नाम चकेसरी जग सोख्या जी ॥ जय० ॥ २ ॥ सुविहत गहनी शासन देवी | सकल श्री संघने सुःख करेवी ॥ जय० ॥ ३ ॥ निजवट टीलडी रत्न बिराजे । काने कुंमल दोय रवि शशि बाजे ॥ जय० ॥४॥ बांहे बाजुबंध बेरखा सोहे । नीलवर्ण स डु जन मन मोहे ॥ जय० ॥ ५ ॥ सोवन मय नित्य चूडी खलके । पा
घरमा घमघम घमके ॥ जय० ॥ ६ ॥ बाहन गरुन चड्या बहु प्रे में। तु गुण पार न पामुं केमें ॥ जय० ॥ ७ ॥ चूनडी जमामां देह प्रति दीपे । नवसरा हारे जग सहु जीपें ॥ जय० ॥ ८ ॥ नित नित मानी