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मंगत दीपक निकै चित्त इति पदम् ॥ विध लिहारी (श्री० ॥ ॥ रेखताश दित होत है अमले बाजे
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रत्नसागर. मंगल दीपक । फूल धरूं फूल वारी । (श्री) ॥१॥ऐसी नांति करूं विध पूजा । आनकै चित्त इकतारी । राज कहत मेरे परम गुरूकी। बेर बेर बलिहारी (श्री० )॥२॥ इति पदम् ॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ रेखता॥ ॥ ॥ ॥ कुशल गुरू देखकै. दरसन । मेरा दिल होत है परसन । जग तमें या समो कोई । न देखा नयननर जोई ॥१॥ विरुद नूमंमलै गजै फरसतां पाप सहु लाजै। पूजतां संपदा पावै । अचिंती लढि घरावै ॥२॥ इकै मुख गुण कहुं केता। मुमै बिज्ञान नही एता । लालचंदकी अरज सुन लीजै । चरण की सरण मोहि दीजै ॥३॥ इति पदम् ॥ * ॥
॥ ॥ (राग कहरवो)॥ ॥ ॥ ॥ कुशल गुरु दरशण दीजै हो (कु०) खरतर गबपति कुशल सूरिंद गुरु । मुझपर महिर धरीजै हो (कु० ) ॥१॥ पतित नवारण विरुद तुह्मारो। इतनी अरज सुणीजै हो (कु० ) ॥२॥ आधि व्याधि अरु दो खी शमण । ए सब दूर हरीजै हो (कु० ) ॥३॥ खेम रतन सेवक कुं निस दिन । सदगुरु सानिध कीजै हो (कु०)॥४॥इति पदम् ॥ * ॥
|| ॥ पुनः॥ ॥ ॥ ॥ वंशी हमारी दीजै (इस चालमें ) पूजो नजारे नाई। गुरु म हिमा योत सवाई (पू०) । मृगमद केशर चंदन अरचो । सुंदर पुष्प च ढाई (पू०)॥२॥ नविक जीव मिल गुरु गुण गावे । वाकै सदगुरु हो त सहाई । (पू०)॥४॥ श्री जिन सौनाग्य सूरि सुगुरु मेरे निशि दिन हर्ष बधाई (पू.)॥५॥इति पदम् ॥१॥
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॥ ॥ (ढाल )॥ मालण ल्यावै फूलमा (ए चाल )॥ ॥.. ॥ॐ ॥ हुं तो अरज करुं करजोमनैं जी । ह्मांरी अरज सुणो महारा ज। (सदगुरु) विरुद घणा राजराजी। सूरि सकल सिरताज ( स०) (सुनिजर जोय जो साहिबा)। थारे रावल राणा राजवीजी । थारा पूनिम पूजै पाय (स०)॥१॥ केशर अगरज कुंकुमांजी। कांई मृगमद रही म