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रत्नसागर.
सहस्स महिथं । सी किररूववंतीणं ॥ १६ ॥ तहविय सा रायसिरी । न लट्टंती न ताइया ताहिं । उयरहिए इक्केण । ताइया अंगबीरेण ॥ १७ ॥ महिलाणस्रु बहुयाणवि । मानु इह समत्त घर सारो । रायपुरिसे हिं निजइ । जणेवि पुरसो जहिं नत्थि ॥ १८ ॥ किं परजण बहु जाणा वणाहिं । वर मप्प सक्खियं सुकयं । इह नरह चक्कवट्टी । प्रसन्न चंदोय दिता ॥ १९ ॥ वेसो विप्पमाणो । संजम पसु वट्टमाणस्स । किं परिय त्तियवेसं । विसं नमारे खतं ॥ २० ॥ धम्मं रक्खइ वेसो । संकइवेसेण दिक्खिनाम अहं । उम्मग्गेण पर्यंतं । रक्खइ राया जणवन्य ॥ २१ ॥ अप्पा जाइ अप्पा | जहन सक्खिन धम्मो । अप्पा करेइ तं तह | जह अप सुहावहं होई ॥ २२ ॥ जं जं समयं जीवो । प्रविस्सइ जेण जेण जावेण । सो तंमि तंमि समए । सुहा सुहं बंधए कम्मं ॥ २३ ॥ धम्मो मए हुतो । तोनवि सी उन्ह वाय विज्जडिन । संवर मणसीन । बाहुबलि तह किलिसंतो ॥ २४ ॥ नियगमइ विगप्पिय चिंतिएण । स द बुद्धि चरिए । कत्तो पारत हियं । कीरइ गुरु अणुवसे ।। २५ ।। थो निरोवयारी । प्रविणीनं गनि निरखणामो । साहुजणस्स गरहिन । जणेवि वयणियं लहइ ॥ २६ ॥ थोवेणवि सप्पुरिसा । स कुमारुब्ब के इबुज्छंति । देहे खण परिहाणी । जंकिर देवेहिं सेकहियं ॥ २७ ॥ जइ तालव सत्तम सुर | विमाण वासीवि परिवति सुरा । चिंतितं सेमं । संसारे सासयं कयरं ॥ २८ ॥ कहतं जन्नइ सुक्खं । सुचिरेणवि जस्स दुक्ख मलि हियए । जंच मरणावसाणे । जव संसाराष्ट्र बंधिंच ॥ २९ ॥ नवएस सहस्से हिवि । बोहिऊं तो न बुज्ऊई कोई। जह बंजदत्त राया। नदाइ निव मारन चैव ॥ ३० ॥ गयकन्न चंचलाए । अपरिचत्ताइ राय लीए । जीवा सकम्म कलिमल | जरिय जरातो पति महे ॥ ३१ ॥ बोत्तलवि जीवाणं । सक्कराईति पावचरियाई । जयवं जा सा सा सा । पच्चाए सो हू इणमो ते ॥ ३२ ॥ पनि वृद्धि कण दोसे। नियए सम्मंच पायवमियाए । तो किर मिगावईए | उप्पन्नं केवलं नाणं ॥ ३३ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ इति पोसह सिज्जाय समाप्ता उपदेश माला ॥ *॥
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