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रत्नसागर. तो। तूठगे जिनचोवीशमोए। प्रगट्या पुन्पकल्लोल ॥५॥ ज० ॥ लव २ वि नय तुझारमोए । नावनगति तुह्मपाय तो। देवदया करी दीजीयेंए । बोध बीज सुपसाय ॥६॥ज०॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ कलशः॥ इयतरणतारण सुगतिकारण पुःखनिवारण जगजयो। श्री वीरजिणवर चरणथुणतां अधिकमन नबटथयो ॥१॥श्री विजय देव सूरिंदपटधर । तीरथजंगम इणजगें। तपगडपति श्रीविजयप्रनसूरि सूरितेजें जगमगें ॥२॥श्रीहीरविजय सूरी शिष्यवाचक । कीर्तिविजय सुरगुरु समो। तस शिष्य वाचक विनय विजयें।थुण्योजिन चौवीशमों। सइसत्तर संवत् नग णत्रीसें रही रानेर चौमाशए। विजयदशमी विजयकारण किन गुण अभ्या सए । नर नवआराधन सिधिसाधन । सुकृतलील बिलासए । निराहते स्तवन रचियुं । नामें पुण्यप्रकाशए ।। ५ ॥ इति श्रीबीरजिन पुन्यप्रकाश० ॥
॥ ॥श्री नमि राजीमती सिशाय॥॥
॥ ॥ देशी ऊमादे जटियाणीरी॥ ॥ ॥ पहिली तो समरू हो सिघ बुधरी दाता सारदा । लायं गुरोरे पाय। प्रनु गुण गास्यां हो नेमीसर साहिब जिन तणा। सुजमत प्रापे मोरी माय ॥१॥ सोरी पुरहुंती हो नेमीसरसाहिब थेचदया। जानकरी याऽराय हसतीतो सिणगारयाहो नेमीसर साहिब थेनला। धोमलांरी गिणती नकाय वाजातो अवकाहो नेमीसरसाहिब वाजता ॥आया तोरणवार । महिल चढी नेहो राजुल जोवै हरखमुं। मनमांहें हरख अपार ॥ ३॥ आंख फरूकै हो सहेली मारी जीमणी । फिरताई दीस भरतार । वामो तो जरीयोहो नेमीसर साहिब जीवनो। पसुवानी सुणीरे पुकार ॥ ४॥ ऊनो तो रथनेहो नेमीसर साहिब राखीयो ॥ श्रे पशु वांध्यां किणकाज । गोरो तो होसीहो नेमीसर साहिब तुमतणो ॥ सारथी कहै छै महाराज ॥५॥ थोडा तो सुखनेहोइ ण राजुल नारी रै कारणें । होसीहो जीवांनोसंहार । जीव बंध्यानेहो नेमीसर साहिब गेडिया । जीवसवेतिणवार ॥६॥ अणपरणी राजलहो नेमीसरसा हिब मेमनें । जायचढ्या गिरनार । पाठेतो करमांमुंहो नेमीसरसाहिब जीतवा। लीयो संयम भार ॥ ७॥ राजुल तोरैहो नेमीसरसाहिन एकली।