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रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. गिरवर ऊपर पांचे ठगमें। पूजकरी अघ हरिये ॥ वि० इ० ॥ कलस अठोत्तर सो लेईनें । न्हवण जली विध करियै ॥ वि० ३० ॥५॥ मूलनायक श्री
आदि जिनेसर । इण गिरिपर समोसरियै ॥ वि० ३०॥ नाव जगतसुं जि ननी पूजा । करतां सहु सुख वरि ॥ वि० इ०॥६॥ लहि अवतार ए गिर नहीं फरसे । तो किम नवजल तरिय ॥वि०३०॥ पुंमरगिरिनो ध्यान धरीने पुन्य खजानो नरिये ॥ वि० ३०॥७॥ए गिरनी आसातना टाली । जात्र करी निसतरिये ॥ वि० इ०॥ सगततां जो संघ लेईन । आवै इण गिर वरियै० ३०॥८॥द्रव्य नावसुं पूजन करिनँ । पाप पंक अपहरियै ॥ वि० इ० ॥ सुमतिकहै धन २ ए गिरवर । पूजौ जवि सुख करियै ॥ वि० इ० ॥९॥॥ काव्य पूर्ववत् ॥ झी श्रीपरत्मा० ॥ इति धूपपूजा ॥३॥
॥॥अथ नही दीपपूजा ॥ॐ॥ (दूहा) नही पूजा दीपनी ॥ करो नविक सुखकार । विमलबोध पावो तुमे । ज्ञानदीप सुविचार ॥१॥2॥
॥*॥पासजिनंदा प्रनु मेरे मनवसिया ॥पा०॥ एचाल ॥ आदि जिणंदा प्रनु सेवो सुखकारी प्रा०॥ निरमलबोध विकासक दीपक। दिन २ जोत अधिक सुखकारी ॥ आ० ॥१॥अनुन्नवदीपक प्रगट नयोहै । सक ल चराचर नाव विचारी॥आ०॥ केवल ज्ञानी प्रथम तीर्थकर । समोवस रया नवियण हितकारी॥ आ० ॥२॥ फागुण सुद आठमने दिवसे । ष नदेव आया सुविचारी ॥ प्रा० ॥ नरथपुत्र चैत्रीपूनमदिन । इणगिर आया जवि मनधारी ।आ० ॥३॥ नमि विनमी राजा विद्याधर। घुमर गिर सेवै इकतारी॥०॥ पोतरा प्रथम तीर्थकर कैरा । द्रावमनें वारखिन विचारी ॥आ०॥ ४॥ कातीसुदपूनम दिन सीधा । दसकोमी मुनि साथ नदारी॥ आ० ॥ पांचे पांमव इणगिर सीधा । नव नारद निज काज सुधारी ॥आ० ॥५॥ संब प्रजुन्न गया इहां मुगते । आठ करम दल दूर निवारी ॥आ०॥ नेमि बिना तेवीस तीर्थकर । समवसरिया नवियण नपगारी॥ आ० ॥६॥
ए गिरराजना गुणगणगातां। सफल हूवै आतम सुविचारी॥। ए गिर .. राजनी पूजा जगमें। जवजल पार नतारण हारी ॥ प्रा० ॥७॥ द्रव्य