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मदरजानेंकी पूजन करनेकी विधि १९७ निस्सही किये पीने, मनोगुप्ती, बचन गुप्ती, काय गुप्ती, करके युक्त रहै। पां चो इंद्रियांको बशमें रक्खै । गमनां गमनमें उपयोगी रहै। गीतादिक अन्य का सुनके चित्तमें व्याकुलता न रक्खे। कुबनी देव कार्यको गेमके और कार्यकी विचारणा न करै । राज कथादि संपूर्ण विकथा गेम । जन्म (और) कर्मके, अनुगत बचन न बोले (अर्थात् ) कोईके माता पितादिक का किया थका, खोटा कार्यकों प्रगट न करै ( तथा ) कर्मानुगत बचन आंधेकों आंधा, गोलेकों गोला ( इत्यादि बचन ) नबोलै ॥ निस्सही किये पाने जिंन मंदरमें धर्म संयुक्त, आत्म हितकारी, प्रमाणोपेत बचन बो लना चाहिये ॥ (जिसनें) मन, बचन, कायाके खोटै व्यापारोंका निषेध अपनी आत्मासे कियाहे ( उसके नावसें ) निस्सही होय (और) जिसने दूषणका त्याग न कियाहे । उसके केवल शब्द नच्चारण मात्र , द्रव्य निस्सही होय ( इसवास्ते ) पूजायोग्य उत्तम वस्त्र पहरके, आठतहके नऊ ल वस्त्रसें मुखकोश बांधे। धूपादिकसें अंग अपना सुच करै । जावसें, दूशरी निस्सही कहते, मुलांनारैमें प्रवेश करै । जयणा संयुक्त पूजा करै । पूजा करते हुए, शरीरमें खाज न खुणे । खेल खंखार न करै। निकेवल नगवानकी स्तवनामें चित्त रख्खे । प्रथम सुगंधयुक्त जल पंचामृतसें स्नात्र करावै । सु कमाल अहा कोमल मुगंध युक्त वस्त्रसें लगवानका अंगलूहै । कपूर क स्तूरी मिश्रित सुध केशर चंदनका विलेपनकरै॥सुन्नवर्ण, सुनगंध युक्त, जी वादि रहित, निर्दोस। गुलाब, चंपा, चंपेली केवमा, जाई, जुई, मोगरादिक पुष्पसें पूजा करै । अष्टांग धूप अगरबत्ती खेवै ॥ मंगलदीप करै । अखंग नकाल अवतांसें प्रनूके सन्मुख अष्ट मंगलीक लिखै ॥ दर्पण १ । नद्रास ण २ । वर्धमान सरावसंपुट ३ । श्रीवत्स ४ । मयुग ५ । कलश ६ । स्वस्तिक ७ । नंद्यावर्त ८ । (ऐसा) अष्ट मंगलकी रचना करै । पंच वर्ण फूलोंसे अष्ट मंगलीक पूजै। सुंदर कुंकम मिश्रित चंदनसे हत्थोदेव । नत्तम नैवेद्य चढावै । अब्बा खाद्य फल चढावै । ( इत्यादि ) पूजाकीबिधि, आरती पर्यंत । राय प्रशेणी, ग्याताधर्म कथा, जीवानिगमादि, सिधांतोमें लिख्ये मुजब करै (पीजे) अंतरंग नक्तीसें प्रचुके सन्मुख नाटक करै ॥ (जैसें)