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रनमागर.
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परमेश्वर प्रनुप्यारो हारे प्रनु सेवक हुँ ढुं तारो । हारे नवो नवना मुख मा वारो। हारे तुमे दीनदयाल ॥ अप०॥५॥ सेवकजाणी आपणो चित्त धरजो। हारे मोरी आपदा सगली हरजो। हारे मुनि माणक सुखीन क रजो। हां रे जाणी पोतानुं बाल ॥ अप० ॥६॥ ॥ॐ॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥ अथ श्राह दिन कृत्य (तथा) देव वंदन नाष्यसें
मंदर जाणकी पूजन करनेकी विधि॥॥ ॥ॐ॥ प्रथम श्रावक दो च्यार घनी रात्ररहते ठळके (प्रथम ) दिलमें न वकार मंत्रका स्मरण करै ॥ में कोणहुं, क्या मेरी जातिहै, क्या मेरा कृत्य है, क्या मेरा धर्महै (इत्यादि) धर्म जागरणासें दिलकों सावचेत करै (पीछे) मलमूत्रकी बाधा दूर करके, अंगशुचीचूत करै ॥ सामायक, प्रतिक्रमणादि करके, विधिसंयुक्त घरदेराशरकी पूजाकरै ( पीने ) यथाशक्ती अन्ला वस्त्र आनूषण पहरके, घोमा, हाथी. रथ, पालखी, सिपाई, नोकर, नाई, बंधु (इत्यादि) परिवार सहित पूजाके लायक, फल फूल प्रमुख, उत्तम, द्रव्य हाथ में लेके । नव्यजीवोंकों मोक्ष मार्ग दिखाता हुआ, जिनशाशनकी प्रभाव ना करता हुआ, जिनमंदर जावै । जिनमंदरमें प्रवेश करके १० त्रिक बिधि शाचवन करै ( सो १० त्रिक लिखतेहे) (पहिला त्रिक) ३ निस्सही ) कहणेंका (जिसमें ) १ निस्सही, जिनमंदरमें पैशतेही कहै ( कहे पीने ) संसार घर संबंधी कुटनी कार्य विचारणा न करै ॥१॥ (दूसरी) निस्सही, प्रदक्षिणा तीन दिये पीछे कहै । जिन मंदरमें फूटा टूटा ठीककरानेकी सारसंगाल रक्खीथी सोनीठोमै । इहां द्रव्य पूजा करणी मोकली रही ॥२॥ तीसरी निस्सही कहे पीने, निकेवल नाव पूजा करै । पिण द्रव्य पूजा न करै ॥ ॥ यह प्रथम निस्सही त्रिक कहा ॥॥ ॥
॥ ( दूसरा त्रिक ) ज्ञान त्रिककी आराधना करनेकों प्रजूके द विणावर्त्तसें तीन प्रदक्षिणादेवै ॥ ॥ (तीसरा त्रिक) मूल नायकजीके बिंबकों पंचांग मिलाके, तीन वेर नमस्कार करै ॥३॥( चौथा त्रिक ) प्र जूकी अंग १ । अग्र २ । नाव ३॥ त्रिविध प्रकार पूजा करै ।। ( अब निस्सही किये पीछे । कृत्य, अकृत्य (तथा ) पूजा विधि, संक्षिप्त लिखते हैं।