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रत्नसागर. शुदि दशमी वैशाखनी वर केवल साधै । काती कृष्णा अमावसीए । शिव गति करे नद्योत । ज्ञान विमल गौतम लहे । पर्व दीपोत्सव होत ॥ २४॥
॥ ॥ अथ थोय प्रारभ्यते ॥ ॥ ॥ लह्यो नवजल तीर धर्म कोटीर हीर । पुरति रज समीर मोह मूसार सीर। पुरित दहन नीर मेस्थी अधिक धीर । चरम श्री जिनवीर चरण कटपट्ठ कीर ॥१॥इम जिनवर माला पुण्य नीर प्रवाला । जग जंतु दयाला धर्मनी शास्त्र शाला । कृत सुकृत सुगाला झान लीला विशाला सुरनर महिपाला वंदता ने त्रिकाला ॥२॥श्री जिनवर वाणी प्रादशांगी रचाणी । सगुण रयण खाणी पुण्य पीयूष पाणी । नवम रस रंगाणी सिद्धि सुखनी निशाणी। मुह पीलण घाणी सनिलोनाव जाणी ॥ ३ ॥ जिनमत रखवाला जे वली लोग पाला । समकित गुण वाला देव देवी कृपाला । करो मं गल माला टालिने मोह हाला। सहज सुख रसाला बोध दीजें विशाला॥४॥
॥ * ॥ अथ स्तवन प्रारंन ॥ * ॥ ॥ॐ॥ आज गईथी हुँ समवसरणमें ॥ ए चाल ॥ ॥ ॥ ॥ वंदोवीरजिणेसर राया। त्रिशलामाता जायाजी।हरिलंगन कंचन वनकाया। मुझ मन मंदिर आयाजी॥वंदोवीर० ॥१॥षम समये शासन जे हना। शीतल चंदन गयाजी। जे सेवंतां नविजन मधुकर । दिन दिन होत स वायाजी ॥ वंदो० ॥२॥ते धन्य प्राणी सदगति जाणी । जस मनमां जिन
आयाजी । वंदन पूजन सेवन कीधी। तेकाजननी मायाजी॥ वंदो०॥३॥ कर्म कठिन नेदन बलवत्तर। वीर बिरुद जिन पायाजी। ए कल मल अतुली बल अरिहा । उशमन दूर गमायाजी ॥ वंदो० ॥ ४॥ वंनित पूरण संकट चूरण तुं मात पिता तुं सहायाजी । सिंहपरें चारित्र आराधी। मुजश निशान ब जायाजी ॥ वंदो० ॥५॥ गुण अनंत जगवंत बिराजे । वर्धमान जिनराया। जी। धीर विमल कवि सेवक नय कहे । शुध समकित गुण दायाजी॥वंदो०॥ ॥५॥इति ॥ इहां । पूरण जय वीयराय कहेवो ॥ॐ॥ ॥ ॥ . ॥ ॥अथ श्री शाश्वता अशाश्वता जिन चैत्यवंदन ॥ ॥
* ॥ सकल मंगलकार एही । सिघ सकल पयहाण । स्यावाद सा