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२८ लब्धि तपस्या स्तवन बिधि -
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जलज्यो सुजगीस ॥ ३ ॥ ( ढाल ) ॥ ॥ सफल संसारनी ॥ ॥ अनुक्रमें हेव अधिकार गाथा तणें । लबधिना नाम परिणांम सरिषा नणें । रोग सहु जाइ जसु अंग फरस्यां सही । प्रथम ते लबधि वै नाम आमो सही ॥ ४ ॥ जासु मल मुत्र नंषध समा जाणीयै ॥ वीय विप्पोसही लबधि वखाणीयै । श्लेषम नषध सारिखो जेहनो । तीजी खेलोसही नांम बै तेह नो ॥ ५ ॥ देहना मैलथी कोढ दूरे हुवे । चोथी जल्लोसही नाम तेह नो वै । केश नख रोम सहु अंग फरसे सही । रहें नही रोग सब्बोसही ते कही ॥ ६ ॥ एक इंद्रिय करी पांच इंद्रिय तणा । नेद जाणें तिका नाम संन्निणा । वस्तु रूपी सहु जांणियै जिण करी । सातमी लबधि ते aria करी ॥ ७ ॥* ॥ (ढाल ) आव्यो तिहां नरहर (ए चाल ) ॥ ॥ * ॥ हिव प्रांगुल अढीयै कणो मांनुष क्षेत्र । संग्या पंचेंद्री तिहां जे वसय बिचित्र । तसु मननो चिंतित जांगें थूल प्रकार । ते रुजुमति नांमें अम लबधि विचार ॥ ८ ॥ संपूरण मानुष क्षेत्रे संज्ञावंत । पंचेंद्रिय जे तसुमन वार्तां तत । सुखम परजायें जाऐं सह परिणाम। ए नवमी कहीयै विपुलमती सुन नाम ॥ ९ ॥ जिए जबधि प्रभावे नही जाय आकाश । ते जंघा विकाचारण लबधि प्रकाश । जसु वचन सरापै खि में खेरुंथाय । ए लब्ध इग्यारमी आसी विस कहवाय ॥ १० ॥ सहु सूखम बादरदेखे लोकालोक । ते केवल लवधी बारमियै सहु थोक । गणधर पढ़ नहीयै तेरम लबधि प्रमाण । चवदम लबधे करी चव दै पूरब जाण ॥ ११ ॥ तीर्थकर पदवी यांमें पनरमी लबधि | सोलम सु खदाई चक्रवति पदरिधि । बलदेव तणो पद लहियै सतरमी सार । अ ढारमि आखा वासुदेव विस्तार ॥ १२ ॥ मिसरी घृत खीरें मेल्या जेह सवाद । एहवी है वाणी नगणी सम परसाद । णीयो नविनूलै सुत्र
रथ सुबिचार । ते कुष्टिक बुद्दी वीशम लबधि विचार ॥ १३ ॥ एकै प दमणीयैवै पद लख कोम । इक वीशमी लबधी पायाणु सारणी जोम । एकै रथै करी उपजै अरथ अनेक । बावीसम कहीयै बीज बुद्धि सुविबेक ॥ १४ ॥ ॐ ॥ ( ढाल ) ॥ ॥ कपूर हुवै अति कजलो
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