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वेकरजोमी, आलोयण स्तवन. तुं समरथ त्रिनुवन धणीजी। मुझनें उत्तर तार ॥( कृ०)॥२॥ नवसायर जमतां थकां जी। दीग दुःख अनन्त । जाग संयोगै नेटीयोजी। जय नं जण जगवंत ॥ (कृ०)॥ ३ ॥ जे फुःख प्रांजे आपणोजी । तेहनें कही मैं पुःख । परपुःख भंजण तूं सुण्यो जी । सेवकनें द्यो मुक्ख ॥ (कृ०) आलोयण लीधां पखैजी। जीव रुलै संसार । रूपी लक्ष्मणा महासतीजी । एह सुणो अधिकार ॥ (कृ०)॥५॥ दूषम काले दोहिलोजी । सूधों गुरु संयोग । परमारथ पीठ नहीं जी । गमर प्रवाही लोग॥ (कृ०)॥६॥ तिण तुम आगलि आपणाजी । पाप आलोकं आज । माय बाप आग लि बोलतां जी । बालक केही लाज ॥ ( कृ० ) ॥ ७॥ जिन ध्रम २ सहू कहै जी । थापै अपणी वात । सामाचारी जूई जूई जी । संसय पॐ मिथ्यात ॥ (कृ०)॥ ८ ॥ जाण अजाण पणे करी जी । बोल्या नुत्सूत्र बोल । रतने काग नमावतां जी । हारयो जनम निटोल ॥ (कृ०) ॥ ९॥ जगवंत भाष्यो ते किहां जी। किहां मुफ करणी एह । गजपाखर खर किम सहै जी। सबल विमासमण तेह ॥ (कृ०)॥ १० ॥ आप परू' आकरो जी । जाणे लोक महंत । पिण न करुं परमादीयो जी। मासाहस दृष्टांत ॥ (कृ०)॥ ११ ॥ काल अनंत मैं लह्या जी। तीन रतन श्रीकार । पिण परमादै पामिया जी। किहां जई करुं पुकार ॥ (कृ०)॥१२॥ जाणुं नत्कृष्टी करंजी । नद्यत करुंग विहार। धीरज जीव धरै नहीं जी। पोते बहु संसार ॥ (कृ०)॥१३॥ सहज पड्यो मुझ आकरो जी। नगमें रूमीवात । परनंद्या करता थकां जी । जायै दिननें रात ॥ (कृ०)॥१४॥ किरिया करतां दोहिली जी । आलस आणे जीव । धरम पखै धंधै पड्योजी । नरगै करस्यै रीव ॥ (कृ० ) ॥ १५ ॥ अण हुँता गुणको कहै जी । तो हर निशि दीश । को हितसीख नली कहै जी । तो मन आएं रीश ॥ (कृ०)॥१६॥ वाद नणी विद्यानणी जी। पर रंजण नपदेश । मन संवेग धरो नहीं जी। किम संसार तरेश ॥ (कृ० ॥१७॥सु त्र सिघांत वखांणतांजी। सुणतां करम विपाक । खिण एक मनमांहि कपजै जी। मुझ मरकट वैराग ॥ (कृ० ) ॥१८॥ त्रिविध २ करि कचरूं जी। न