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रत्नसागर
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यो पारणो वीर। लोकां प्रतें इम कहे जी । में वैराई कीर ॥ ( ज० ) ॥ ॥ १४ ॥ राजादिक सहु ए कहै जी। धन धन पूरण सेठ । ऊंची करणी तैं करी जी । अवर सहू तुऊ हेठ ॥ ( ज० ) ॥ १५ ॥ जीरण सेठ सु तबैजी । बाजित्र पुंडुनी नाद । अनन्त कीयो किहां पारणोजी । मनमें थयो विखवाद || ( ज ० ) ॥ १६ ॥ हुं जगमें अभागीयो जी। मेरे नाया सांम । कल्पवृक्ष किम पामीयै जी । मारू मंडल गम ॥ ( ज० ) ॥ १७ ॥ जेता मनोरथ में कीया जी । तेता रह्या मनमांहि । निरधन जिम जिम चिं तवेजी। तिम तिम निरफल थाहि ॥ ( ज० ) ॥ १८ स्वामी तिहां कीयो पारणोजी । कीयो अथ विहार । या पाश संतानीया जी । तिहां मुनि केवल धार ॥ ( ज० ) वेशालापुर राजीया जी । लोकांसं आणंद | राय प्रश्न पूबै तिहांजी । सुगुरु चरण अरविंद ॥ ( ज ० ) ॥ २० ॥ मेरै नगरमें जी। जीवपुन्य जशवंत । कहै केवली आाजतो जी । जीरण सेठ म हंत ॥ ( ज० ) ॥ २१ ॥ राय कहै कि काररौंजी । जीरण सेठ महंत । दान दीयो जिनवीरनेंजी । पूरण ते जसवंत ॥ ( ज० ) ॥ २२ ॥ रायप्रतें कहै केवलीजी । पूरण दीनो दान । हेमवृष्टि फल तेहनें जी । वरन कोई प्रमाण (ज० ) ॥ २३ ॥ देवलोक तिए वारमैंजी। जीरण घाल्योबंध । विना दान दीना लह्यो जी । उत्तम फल संबंध ॥ ( ज० ) ॥ २४ ॥ धमी एक सुर डुनी जी । जो न सुणं तो कान । लहि तो जीरण तो सहीजी । केवल अविचल ठाण ॥ ( ज० ) ॥ २५ ॥ राजा जीरणने दीयोजी। अ धिक मान सन्मान । मुख्य नगर में थापीयोजी । जोवो पुन्यप्रमाण ॥ (ज०) ॥ २६ ॥ दान दीयो सुपात्रनें जी । ते निष्फल नवि जाय । पात्रदान अनु मोदतांजी । जीरण जिम फल थाय ॥ ( ज० ) ॥ २७ ॥ इम जाणी अनु दनाजी । दान सुपात्र रसाल । दान देवै सुपात्रने जी । तेहनें नमें मुनिमा ल ॥ ( ज० ) ॥ २८ ॥ इति श्री महावीर स्वामीको पारणो संपूर्णम् ॥ ॥ ॐ ॥ अथ सब पापादिक आलोयण स्तवन लि० ॥ ॥
॥ * ॥ बेकरजोगी वीनवूंजी। सुणि स्वामी सुविदीत । कूम कपट मूंकी करीजी । बात कहूं आपवीत ॥ १ ॥ ( कृपानाथ मुऊ वीनती अवधार)