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सतरनेदी पूजा. तसुपीम नही सुम्मणे । ( पु० )। समवसरण पंचवरण अधोवृत । बि वुध रचे सुमना सुसमा ॥३ ॥ बारमी पूज नविक तिम करै । कुशम विकस हस ऊचरै। तसु नीमबंधन अधरा हुवै । जेकर हिं जे जिननमें ॥ पु० ॥ ४॥ * ॥ इति बारमी पुष्पवृष्टी पूजा ॥ एकही फूलनगलै ॥
॥ॐ॥अथ तेरमी अष्टमंगलीक पूजा॥॥ ॥ ॥ अष्टमंगलीक लेकर मुखे इम पढे ॥ ॥ रागवसंत ॥१॥ (दूहा) तेरमीपूजा अवसरै । मंगल अष्टविधान । युगति रचै सुमतै स ही। परमानंद निधान ॥ ॥१॥ राग वसंत ॥ ॥ अतुल विमल मि ख्या। अखंमगुणे निल्या । शालि रजत तणा तंडुलाए । श्लषण समाजक विध पंचवरणक । चंद्रकिरण जैसा ऊजलाए ॥१॥ (अ०)॥ मेल मंगल लिखै सयल मंगल आखै । जिनप आगलि सुथांनक धरै ए । तेरमीपू जा विध तेरमी मन मेरै । अष्टमंगल अष्टसिधि करै ए ॥ (अ०)॥२॥
॥॥अथ विधिः (राग कल्याण)॥ॐ॥ ॥ॐ ॥ हांहो पुजावणी ते रसमें (हांहो. रसमें ३) ॥ ते॥ अष्टमं गल लिख कुशल निधान । तेज तरुणके रसमें ॥ पू० ॥१॥ दप्पण न द्रासन नंद्यावर्त्त पूर्णकुंन । मयुग श्रीबह तसुमें। वर्षमान स्वस्तिक पूजा मंगलकी । आनंद कल्याण सुख रसमें ॥२॥ (पू.)॥ॐ॥ इति तेरमी पूजा ॥१३॥ * ॥ अष्ट मंगलीक चढावै॥ॐ॥
॥अथ चौदमी धूप पूजा ॥६॥ ॥ धूप रकेबीमें धर मुखै इम पढे॥॥ (दूहा)॥ ॥ गंधवटी मृगमद अगर । सेव्हारस घनसार । धरि प्रनु आगलि धूपणा । चवदमी पूजाचार ॥१॥ (राग वेलानल) कृष्णागर कपूरचूर। सोगंध पंचेपूर। कुंदरक सेव्हारस सार । गंधवटी घनसार ॥१॥ॐ॥ गंधवटी घनसार चंदन मृग मदारस नेलि यै । श्रीवास धूप दशांग अंबर सुरनि बहु द्रव्य मेलियै । वेरुलिय दंम कनक मंमित धूप धाणो कर धरै । नववृत्तिधूपकरंति नोगं रोग सोग अशुन हरे॥२॥ ॥ ॥ ॥
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