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रत्नसागर श्रीजिनपूजा संग्रह.
दूहा ) ॥ ॥ फूलगरो प्रतिसोमतो । फूँदै लहकै फूल । महकै परिमल फलमहा । इग्यारमी पूज मूल ॥ १ ॥ * ॥ ( राग रामगिरी ) ॥ * ॥
॥ ॥ कोज कोल राय वेलि नवमालिका । कुंद सुचकुंद बर बिच कलूए (हां रे अईयो ) तिलक दमक दर्ज मोगरा परमलं । कोमला पारिध पारुलूए ॥ ( हां० प्र०) प्रमुख कुशमै रचै त्रिभुवन कुं रुच । कुशमगेहें विचि तोरणं ए ॥ ( हां० प्र०) गुढ चंद्रोदयं कुंबका नन्नयं । जालिका गोख चितचोरं । (हां० [अ० ) ॥ २ ॥ * ॥
॥ ॥ अथ विधि ॥ ( राग रामगिरी ) ॥
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॥ * ॥ मेरो मन मोह्यो माई री । फूलघर आनंद फीलै ( फू० ) अ सत नसत दाम वघरी मनोहर । देखत तबही सब दुरितखीजै ( फू० ) ॥ ॥ १ ॥ कुशम मंरुप थं गुड चंद्रोदय । कोरणी चारु विनाण सजै । इ ग्यारमी पूज वणीहै रामगिरी । विबुध विमान जैसें तिपुरिनजै ( फू० ) ॥ २० ॥ इति इग्यारमी फूलघरपूजा ॥ ११ ॥ एकही फूलवर चढाईजै । ॥ अथ बारमी पुष्पवर्षा पूजा ॥
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॥ ॐ ॥ पंचवर्णफूल गुलाबजल लेई । सुखै इम पढे ॥ ( राग मल्हार ) | ( दूहा ) वरषै बारमी पूजमें । कुशम वाद लिया फूल । हरण ताप दुःख लोकको । जानुसमा बहुमूल ॥ १ ॥ ( राग जीममल्हार ) कमखानी जाति ॥
॥ * ॥ मेघ बरसै नरी पुप्फवादल करी । जानु परमाण कर कुशम पगरं । पंचवरणे वण्यो विकचि अनुक्रम चिएयो । प्रधोवृतै नही पीडपस रं ॥ १ ॥ मे० १ ॥ वासमह के मिलें । नमर नमरीमिले । सरस रस रंग ति दुख निवारी। जिनप आगे करे सुरप जिम सुखवरै । बारमी पूज ति पर गारी ॥ मे० ॥ २ ॥
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॥ अथ विधिः (राग जीममवार ) ॥
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॥ ॐ ॥
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॥ * ॥ पुप्फ बादलीया बरसै । सुसमां ( हो ० ) । योजन असु चिहर वरस गंधोदक | मनुहर जानु समां (पु० ) गमन आगमन की पी रनही तसु । इह जिनको प्रतिसय सुगुणें । गुंजत २ मधुकर इम पन ॥ गुं० ॥ मधुर वचन जिन गुण थुणइ ॥ २ ॥ कुसुम सुपरि सेवा जो करै ।