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रत्नसागर. ॥१०॥श्री०॥ तत्समेणि अवसर्पणि आरा । चै जूज़ये नांतरे। घटरितु काल विशेष विचारो। निन्ननिन्न दिन रातरे॥ ११ ॥श्री०॥ काले बाल बिलास मनोहर । यौवन कालाकेशरे । बुट्टपणे हुयवलि २ धुर्बल । सकति नही लवलेसरे ॥१२॥श्री०॥(ढालर गिरु आ गुण श्रीवीरजी ए चाल)॥ ॥ ॥ तब सुनाव बादी वदैजी। कालकिसुं करै रंक । वस्तु सुनावै नीपजे जी । विणसे तिमज निस्संक ॥ १३ ॥ ( बिवेकी जुनो २ वस्तु सु जाव ) ॥ उतै योग जीवनवती जी । वांमणि न जणे बाल । मुंबनही महिला मुखे जी । करतल ऊगै न बाल ॥ १४ ॥ बि० ॥ विणस नाव नवि संपजै जी । किमह पदारथ कोय । अंब नलागै नींव+जी। वागवसते जोय ॥१५॥ वि०॥मोर पीउ कुणचीतरै जी। कुण करै संध्या रंग । अंगवि विध सविजीवनाजी। मुंदर नयन कुरंग ॥ १६ ॥ बि० ॥ कांटा बोरवंबूल नाजी । कुणे अणियाला कीध । रूप रंग गुण जूजूाजी । तस फल फू ल प्रसिघ ॥ १७ ॥ बि० ॥ विसहर मस्तके नितवसैजी। मणिहरै विस तत काल । परबत थिर चल वायरोजी । नरध अगननी माल ॥ १८ ॥ वि०॥ मन तुंब जलमां तरैजी । बूझै काग पाहाण । पंख जाति गयणे फिरे जी। इणपरै सहिज बिनाण ॥ १९ ॥ बि० ॥ वाय झूठ थी नपसमें जी। हरडै करै विरेच । सीफेनहि कणकांगमो जी । सकल सुनाव अनेक ॥ २० ॥ बि० ॥ देश विशेषै काठनोजी । नुयमां थायै पाखाण । संख अस्थिनो नी पजे जी । क्षेत्र सनाव प्रमाण ॥ २१॥ बि० ॥ रवि तातो शशि सीयलो जी। नव्या दिक बहु नाव । उए द्रव्य आपापणा जी । न तजै कोई सुन्नाव ॥ २२॥ बि०॥ ॥ (ढाल३) कपूर हुवै अति जलो रे एचालकाल किसुं करै बापमोरे । वस्तु सुजाव अकऊ । जो नहोइ नवतव्यता जी । तो किम सीजे का रे ॥ २३ ॥ (प्राणी मकरो मनजंजाल)॥ एतो ना वी जाव निहाल रे ॥ प्रा० ॥जलधितरै जंगल फिरै जी। कोमि यतन करें कोय । अणनावी होवै नहीं जी। नावी होय ते होय रे ॥ २४ ॥ प्रा०॥ आंब मौर वसंतमा जी । मालै कोई लाख । खरया केई खांखटी जी। केइ आंबा केई साखरे ॥ २५ ॥ प्रा० ॥ वांउल जिम जवतव्यता जी। जि