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रत्नसागर. । ॥ॐ॥अथ थोय प्रारभ्यते॥॥ ॥ ॥ सुविधि जिन लदंत । नाम वली पुप्फ दंत । सुमति तरुणि कंत । संतथी जेह संत । कीयो कर्मपुरंत । लहि लीला वरंत । नव ज लधि तरंत । तेनमीजे महांत ॥१॥इति थोय ॥ * ॥९॥
॥ ॥अथ श्री शीतलनाथ चैत्यवंदन ॥ * ॥ ॥ॐ॥ प्राणत कल्पथकी चव्या। शीतल जिन दशमा । वदि वैशा पनी उठे । जाणि दाघज्वर प्रशम्या॥ महावदि बारस जनम दिख्या । तस बारसें लीध । वदि पोष चनदश दिने । केवली परसिघ । वदि बीजे वै शाखनी ए। मोद गया जिनराज । ज्ञान विमल जिनराजथी । सीके स गला काज॥१॥ इति ॥
___॥ ॥अथ थोय प्रारभ्यते॥ॐ॥ ॥ ॥ सुण शीतल देवा वालही तुझ सेवा । जेम गज मन रेवा। तुंही देवाधि देवा । पर आण वदेवा शम नित्यमेवा । सुख सुगति लहे वा हेतु मुख खपेवा ॥१॥ इति ॥ ॥१०॥ ॥ ॥ ॥॥
॥॥अथ श्री श्रेयांसनाथ चैत्यवंदन ॥ ॥ ॥ ॥ अच्युत कल्पथकी चव्या । श्रेयांस जिणंद । जेठ अंधारी दि वस बहें। करत वहु आनंद । फागुण वदि बारसें जनम । दीदा तस ते रस । केवली माह अमावसि । देसना चंदन रस । वदि श्रावण त्रीजे ल ह्या ए। शिव सुख अखय अनंत । सकल समीहित पूरणो । नय कहे ए जगवंत ॥१॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥॥
॥॥अथ थोय प्रारभ्यते ॥१॥ ॥ * ॥ सविजिन अवतंस । जास इख्याग वंश । विजित मदन कंस शुध चारित्रहंस । कृत जय विध्वंस । तीर्थनाथ श्रेयांस । वृषन ककुद अं श। ते नमुं पुण्य वंश ॥१॥ ॥११॥ ॥ ॥ ॥
॥ अथ श्री वासु पूज्य चैत्य वंदन ॥॥ .. ॥ ॥ प्राणतथी इहां आविया । ज्येष्ठ शुदी नवम । जनम्या फागु