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जैती संयुक्त नवपद क्लीकरण विधि. ४८ परतीर्थकादि अशनादि दानवर्जनरूप श्रीस॥ ४९॥ परतीर्थकादि गंधपुष्पादि प्रेषण वर्जनरूप श्रीस॥ ५०॥राजानियोगाकार युक्त श्रीस० ॥ ५१ ॥ गणानि योगाकार युक्त श्रीस॥ ५२॥ वलानि योगाकार युक्त श्रीस०॥ ५३॥ सुरानि योगाकार युक्त श्रीस०॥ ५४॥ कांतार वृत्याकार युक्त श्रीस०॥ ५५॥ गुरु निग्रहकार युक्त श्रीस० ॥ ५६॥ सम्यक्त चारत्र धर्मस्य मूलमिति चिंतनरूप श्री०॥ ५७॥ चारत्र धर्म पुरस्य धार मिति चिंतन श्रीस०॥ ५८॥ चारत्र धर्मस्य प्रतिष्ठानमिति चिंतन श्रीस०॥ ५९॥ चारत्र धर्मस्याधार मिति चिंतन श्रीस॥ ६०॥ चारत्र धर्मस्य लाजन-मिति चिंतन श्रीस०॥ ६१॥ चारित्र धर्मस्य निधि सन्निन मिति चिं० श्री०॥ ६२॥ अस्ति जीवेति श्रघानस्थान युक्त श्रीस०॥ ६३॥ सचजीव नित्यति श्रधान स्थान युक्त श्री० ॥ ६४॥ सचजीव कर्माणि करोतीति अचान स्थान यु० श्री०॥ ६५॥ सचजीव कृत कर्माणि वेदयतीति अघान स्थान यु०॥ ६६ ॥ जीवस्यास्ति निर्वाणमिति श्रधान स्थान युक्त श्री० ॥ ६७॥ अस्ति पुनर्मोको पायेति श्रधान स्थान यु० श्रीस०॥
॥* इस रीतसे सतसहि नमस्कार करै । ( खमाहोके ) अन्नत्थू ससि एणं० (इत्यादि कहिके (६७) लोगस्स (अथवा) ७ लोगस्सको काव सग्ग करै । एक लोगस्स कहके पारै । (पीजे पूर्वोक्त करणी करै ॥ * ॥
॥अथ सप्तम दिवश बिधि लि० ॥४॥ ॥ॐ॥ ( शी णमो नाणस्स) इस पदको (२) हजार गुणनो करै। झान पद नज्वल वर्ण है (इससे) तंमुलका आंबिल करै। इक्कावन नेद ग्यान पदके चिंतवके नमस्कार करै॥ ॥ ..