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रत्नसागर. २१॥ शंका दूषण रहिताय सदर्शनाय नमः॥ २२॥ कांदा दूषण रहिताय सद्दर्शनाय नमः॥ . २३ ॥ विचिकित्सा रूप दूषण रहिताय०॥ २४ ॥ कुदृष्टि प्रशंसा दूषण रहिताय॥ २५॥ तत्परिचय दूषण रहिताय०॥ २६ ॥ प्रवचन प्रनावक रूप स०॥ २७॥धर्मकथा प्रनावक रूप स०॥ २८ ॥ वादी प्रजावक रूप स०॥ २९ ॥ नैमित्तक प्रनावकरूप स०॥ ३०॥ तपस्वी प्रनावकरूप सद्द०॥ ३१॥ प्राप्तयादि विद्या नृत्यनावकरूप स०॥ ३२॥चूर्ण जनादि सिमनावकरूप स०॥ ३३॥ कविप्रनावकरूप सद्दर्शनाय नमः॥ ३४॥ जिनशाशने कौशलता नूषनरूप स०॥. ३५॥ प्रनावना नूषणरूप स०॥ ३६॥ तीर्थसेवा नूषणरूप स०॥ ३७॥थैर्यता नूषणरूप सदर्शनाय नमः॥ ३८॥ जिनशाशने नक्ति नूषणरूप०॥ ३९॥ नपशम गुणरूप सदर्शनाय नमः॥ ४०॥ संवेग गुणरूप श्रीस०॥ ४१॥ निर्वेद गुणरूप श्री सदर्शनाय नमः॥ ४२ ॥ अनुकंपा गुणरूप श्रीस०॥ ४३॥ आस्तिका गुणरूप श्रीस० ॥ ४४॥ परतीर्थकादि वंदन वर्जन रूप श्रीस०॥ ४५॥ परतीर्थकादि नमस्कार वर्जनरूप श्रीस॥ ४६॥ परतीर्थकादि आलाप वर्जनरूप श्रीस०॥ .. ४७.परतीर्थकादि संलाप वर्जनरूप ॥