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पंचतीर्थस्तवन पर्युषण स्तुति.
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वाधे । जेम घोडे पाखरीयें । सकल जिनेसर पूजी केशर । पाप पडल सवि हरीयें | वो ॥ ६ ॥ कण ध्यानें प्रजुने ध्यातां । मनमांहि नवि मरीयें ज्ञान विमल कहे प्रभु सुपसायें । सकल संघ सुख करियें ॥ आवो० ॥ ७ ॥ ॥ * ॥ अथ श्री अष्टापद गिरि स्तवन ॥ ॥
॥ * ॥ अष्टापद गिरि यात्रा करणकुं । रावण प्रतिहरी आया । पुप्फ क नामें विमानें बेशी । मंदोदरी सुहाया ॥ १ ॥ श्री जिन पूजीयें लाल । समकित निर्मल कीजें । नयणें निरखी हो लाल । नरनव सफलो कीजें । ही हरखी लाल । समता संग करीजें । ( प्रकणी ) चनमुख चनगति ह रण प्रसादें । चनवीसे जिनवैठा । चनदिशि सिंहासन समनासा । पूरबदिशि दोय जिठा ॥ श्री० ॥ २ ॥ संभव आदें दक्षिण चारे। पश्चिमे आठ सुपासा । धर्म आदि उत्तर दिशि जाणो । एवं जिनचनवीशा ॥ श्री० ॥ ३ ॥ बैठा सिंह त आकारै । जिन हर जरते कीधा । रयण बिंब मूरति थापीनें । जगजश वाद प्रसिधा ॥ ४ ॥ करे मंदोदरी राणी नाटक। रावण तांत बजावे । मादल वी रा ताल तंबूरो। पगव उम उम कावे ॥ श्री० ॥ ५ ॥ भक्ति जावें एम नाटक करतां । तूटी तंती विचालें । साधी प्राप नसा निज करनी । लघु कलाशुं ततकाजें ॥ श्री० ॥ ६ ॥ द्रव्य भावशुं भक्ति न खंडी । तो अक्षय पद साध्युं समकित सुरतरु फल पामीनें । तीर्थंकर पद लाभ्युं ॥ श्री० ॥ ७ ॥ इणि परें विजन जे जिन मागें । बहुपरें भावना जावे । ज्ञान विमल गुण तेह नाह निश। सुर नर नायक गावे ॥ श्री० ॥ ८ ॥ इति० ॥
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॥ * ॥ अथ श्री समेत शिखर स्तवन ॥
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॥ ॥ समेत शिखर गिरि जेटीयेंरे । भेटवा भवना पास । आत म सुख वरवा जणीरे । ए तीरथ गुण निवासरे ॥ १ ॥ जवियां से वो तीरथ ह । समेत शिखर गुण गेहरे ॥ वि० ॥ से० ॥ ( ए आ कणी ) ॥ समेत शिखर कलपें कह्योरे । वीश टुंक अधिकार । वीश तीर्थंकर शिव वरचारे । बहु मुनिनें परिवाररे ॥ ज० ॥ २ ॥ से० ॥ सिध खेत्र मां हे व स्यारे । जाखे नय व्यवहार । निश्चय निज स्वरूपमां रे । दोय नय प्रजुजीना सार ॥ ज० ॥ ३ ॥ से० ॥ स० ॥ आगम वचन विचारतां रे । अति दुर्ग
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