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लावण्यां संग्रह. सरवंगे रूपी। मेरे मन वसे वसेरे॥वारी० ॥१॥शुच बुच अविरुप हे। वहे अनादि अनंतरे॥ वीर प्रनुके आगे गौतम । अमृत पद लहे लहेरे॥ वारी०३
॥ ॥राग काफी॥॥ ॥ ॥ खतरा दूर करनां दूर करनां । एक ध्यान प्रनूका धरनां ॥ खतरा दूर करनां ॥ दू०॥ टेक ॥ जबलग पांचो निर्मल करनां । तब लग जिन अनुसरनां ॥ खतरा० ॥१॥ क्रोध मान माया परिहरनां । सुमति गुप्ति चित्त धरनां ॥ खतरा० ॥२॥ संबर नाव सदा मन धरनां । आतम पुर गति हरनां ॥ खतरा०॥३॥धन कण कंचन कुं क्या करनां । आखर एक दिन मरनां ॥ खतरा०॥४॥ज्ञान नद्योत प्रनु पाए परनां । शिव सुंदरी सुख वरनां ॥ खतरा०॥५॥ इति ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ ॥ पुनः॥॥ ॥ ॥ पानीमें मीन पियासीरे। सुन सुन आवत हांसीरे॥ टेक॥ सुखसागर सब ठगेर नरयो हे। तुं कां जयो नदासीरे ॥ पानी० ॥१॥ आत्मज्ञान बिन नर नटकत हे । क्या मथुरा क्या काशीरे ॥पा० ॥२॥ मान मुनि कहे ए गुरु साचो। सहजे मिले अविनाशीरे॥ पा० ॥३॥ इति ॥
॥ ॥ गरवा चाल॥॥ ॥ ॥धन धन रे दीवाली मारे आजुनीरे । मेंतो बबी निरखी जिनराजनीरे॥धन धनरे दीवाली मारे आजनीरे ॥टेक ॥ पहेरी अंगी अलोकिक जातनीरे । मांही बुट्टी दीसे नांत नांतनीरे॥धन० ॥१॥ मणी हीरा मुकुटमां जया बहुरे । कानें कुंलनी शोना शी कहुंरे॥ धन॥२॥ मुने किरपा करी ते ९ कहुं कशीरे । मारे वाहाले मुफ सामुं जोयुं हसीरे ॥ धन० ॥ ३ ॥ पुनु शांति जिणंद हृदये वस्यारे। थई सूरशशीनी चढती दशारे॥धन॥४॥ इति ॥ ॥
. ॥॥ पुनः॥ ॥ ॥॥धन धन आजुनो दिन रलियामणोरे । सूरज सोनानो नग्यो सोहामणोरे ॥धन ॥ टेक०॥ वाहणुं वातां प्रनुने चरणे नम्योरे । जिन राज ते माहरे मन गम्योरे ॥धन ॥१॥ नव ग्रह समा थया मारे आ