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रत्नसागर.
रात दीसे अजुवाली रे | आज झारे० ॥ ४ ॥ श्रमावसकी पिल्ली राते । करम सहु टाली । श्री महाबीर निखाणे पोहोता । अजरामर सुख कारीरे ॥ आज झारे० ॥ ५ ॥ परिवा नें वली जुहार पटोला ए रत रूमी सारी ॥ गुरु गौतमनां चरण पखाली । रीऊ पामी रढीयाली रे ॥ श्राज मारे० ॥ ६ ॥ बीजें तो वली जावक बीज । बेनरमी प्रति वाहाली ॥ पांचे दिन होय रे पनोता । एवे एवे हरखे गाईरे ॥ आज झारे० ॥ ७ ॥ हरखविजय पंकित इम बोले । करोसहु सेव सुंहाली ॥ रूपविजय पंकित गुणगावै | जय जय वाजे ताली रे | आज झारे० ॥ ८ ॥ * ॥ ॥ * ॥ पुनः दीपमाला स्तवन ॥
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॥ * ॥ झारे दीवाली रे थई आज । प्रनु मुख जोवाने ॥ सरया सरयारे से aari का । जवख खोवाने ॥ टेक ॥ महावीर स्वामी मुगतें पहोता ने । गौतम केवल ज्ञान रे || धन अमावस्या धनदीवाली झारे । वीर प्रभु निवाए | जिनमुख० ॥ झारे दीवाली ० ॥ १ ॥ चारित्र पाल्या नि र्मलांने । टाल्या ते विषय कषाय रे । एवा प्रजुनें वांदिये तो। नतारे जव पार ॥ जिन० ॥ मा० ॥ २ ॥ बाकुला वोहोरथा बीरजी ने । तारी चंदन बाला रे ॥ केवल लई प्रनु मुकर्ते पोहोता । पाम्या जवनो पार ॥ जि न० ॥ मा० ३ ॥ एवा मुनिनें वांदीयेंजे । पंचमज्ञानने धरतारे । समवसरण देई देशना रे ॥ प्रनु तारया नरने नार ॥ जिन० मा० ॥ ४ ॥ चौवीशमा जि सरू ने । मुकति तथा दातार रे । कर जोगी कवियण एमन्त्रणे । मारो न बनो फेरो टाल || जिनमुख० ॥ मा० ॥ ५ ॥ ॥
॥ * ॥ श्रात्मलघुता स्तवन ॥ ॥
॥ * ॥ यो जिनदास झूठो रे झूठो ॥ येने लेइ लाकडी कूटो | यो० ॥ सुकृत सामो पग नहिं नरतो । ग्यान हीयाको खुटो ॥ सुधारयो सुधरे न हिंघडतां । जैसो लकडको ठगे ॥ यो० ॥ १ ॥ जणवा गुणवाका गुण नहिं आया । कोरोही पकड्यो पूठो || गपोडा सुण कर लोक पूजता । ए अलग कालको ठूठो ॥ यो० ॥ २ ॥ पंडित गुरुकी सोबत पाई । चेत्यो नहिं हीयाको फूटो । साचा नरको संग न करतो । कूड कपट नहिं बूटो ।
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