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... १५ तिथोंका मोटा बगेटा स्तवन. २५१ ॥ ॥ अथ श्रीविमलजिन स्तवन ॥ ॥ ॥ ॥ घर अंगण सुरतरु फल्योजी । कवण कनक फल खाय । गयवर वांध्यो वारणेजी । खर किम आवेदाय ॥१॥ विमल जिन माहरे तुझसुं प्रीति । मुर सकलंकित मुं मिल्यां जी। हीयडो हीसे केम ॥ वि० २॥ ॥२॥ मन गमता मेवा लहीजी । कुणखल खावा जाय । आदर साहिब नो लहीजी । कुणब्ये रांक मनाय ॥ वि० ॥३॥ पाच ते कुण काचनें जी। अलव पसारै हाथ । कुण सुरतरु थी कठिन जी । वांवल घाले वा थ॥ वि०॥४॥ देव अवर जो हुं करूं जी । तो प्रनु तुमची आण । श्री जिनराज नवो नवैजी । तुंहीज देव प्रमाण ॥ वि०॥५॥ ॥॥ इति श्री विमल जिन स्तवनं ॥९॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ अथ श्रीशीतल जिन स्तवन ॥ ॥ ॥ ॥ मोरा साहिब हो श्री सीतलनाथकि। वीनती सुणो इकमोरमी। मुख नांजै हो जग दीन दयाल कि । बात सुणीमें तोरमी ॥१॥ (मो.) तिण तोरैहो हुँ आयो पासकि । मुझ मन आस्या जै घणी । कर जोडी हो कहुं मननी बातकि । तुं सुणि जे त्रिनुवन धणी ॥ २॥ (मो०) हुँ नमियोहो नव समुद्र मकार कि । उक्ख अनंता में सह्या । ते जाणे हो तुं हीज जिन राज कि । में किमजायें ते कह्या ॥३॥ (मो० ) नाग जो गै हो तोरो श्री नगवंत कि । दरसण नयणे निरखियो । मन मान्यो हो मोरे तुं अरिहंत कि । हियमो हेजे हरखियो ॥४॥ (मो०) एक निश्चै हो में कीधो आज कि । तुझ विण देव बीजो नही । चिंतामणि हो जो पायो रतन कि । काच ग्रहै कहो कुण सही ॥ ५ ॥ (मो०) पंचामृ तहो जिण लोजन कीध कि । खन खायवा मनकिम थीयै । कंठ तांइहो जो अमृत पीधतो । खारो जल कहो कुण पीयै ॥ ६ ॥ (मो०) मोती कोहों जो पहरयो हारकि । चिरमठि कुण पहिरै होय । जसु गांठे हो लाख कोमि मरत्थ कि । व्याज काढी दाम कुण लीये ॥ ७ ॥ (मो०) घर मांहें हो जो प्रगट्यो निधानतो । देस देसांतर कुण नमें । सोना नोहो जो पोरसो सीधतो । धातुरवादी कुण धमें ॥ ८ ॥ (मो०) जिण
काडी दामण पहिरे हो" (मो० तारहो