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रत्नसागर.
जमें निसदीस । इम मन आणुरे ॥ ३ ॥ सुरमणि ज्युं सुखकार । नयण वि राजे रे। हृदय कमल सुविलास । थाल ज्युं गजे रे ॥ ४ ॥ प्रनु कर चर ण विलोक । पंकज हारयो रे। ततखिण निज संवास । जलमें धारयो रे ॥५॥इम सरवंग नदार । श्रीजिन राया रे। साचै पुण्य संयोग । सा हिब पायारे॥६॥ प्रनु गुण अनुन्नव नीर । सांग सुरंगेरे । टाल्यो पा तिक पंक। आतम संगैरे॥७॥ वरस अढार चौतीस । वदि वैशाखै रे । मनु हर पांचम दीस । सहु संघ साखें रे ॥ ९ ॥ नगर महेवा मांहि । पास जुहारया रे। श्रीजिन चंद मुणिंद । वंगित सारया रे ॥९॥ ॥ इति पार्श्व जिन स्तवनं ॥ ॥७॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ..
॥ ॥अथ श्रीषनजिन स्तवन ॥१॥ ॥ ॥ (दाल) पाटो धरजी पाटीय पधारो ए० ॥ सुणि २ सेजेज गि रस्वामी । जगजीवन अंतरजामी । हुँतो अरजकरुं सिरनामी । कृपानिध वीनती अवधारो॥१॥नवसायर पार उतारो । निज सेवक वानवधारो॥ कृ०॥प्रनु मूरति मोहन गारी। निरख्यां हरखे नरनारी । जान वारी हुं वार हजारी ॥ कृ० ॥२॥ हिव किसिय विमासण कीजै । मुझ ऊपर महिर धरीजै । दिलरंजन दरसण दीजै ॥ कृ०॥३॥ आज सयल मनोरथ फ लिया। नव नवना पातिक टलिया। प्रनु जो मुझ सैमुख मिलिया ॥ कृ०॥ ॥४॥ समरयां संकट टलि जायै । नव नव नित मंगल थायै । मुझ आ तम पुण्य नरायै । कृ०॥ ५ ॥ कर जोमी वीनति कीजै। केसर चंदन च रचीजै । दिन धन धन तेह गिणी जै ॥ कृ०॥६॥ प्रनु दरस सरस लहितोरो । अति हरखित हुवो चित्त मोरो । जिम दीगं चंद चकोरो ॥ कृ० ॥७॥ परतिख प्रजु पंचमै ओरै । विसमा जय संकट वारै । सहु सेवक काज सुधारै ॥ कृ०॥८॥ सेवो स्वामि सदा सुखदाई। कमणा न रहै घर काई। बाधै संपति सोन सवाई ॥ कृ०॥९॥नानिराय कुलंबर चंदा। जव जन मन नयण आणंदा । अोलगै सुर असुर सुरिंदा॥ कृ० ॥१०॥ जयकारी रिषन जिणंदा। प्रहसम धर परम आणंदा। वंदै श्रीजिन भक्ति सूरिंदा ॥ कृ०॥ ११॥ इति श्री षन देवजी स्तवन संपूर्णम् ॥ ॥ ॥