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रत्नसागर.
कहै । कहिये श्रीमुनिराय ॥ १०॥ ॥ (ढाल) रथनृपावसुं ए (एचाल ) | मधुर स्वरे मुनिवर कहैए । नाणी गुरु सुपसाय । दीपक सहु लोकनाए । कर्म सुभासुन परनवे ए। इह जव फल निपजाय । करम गति वांकमीए ॥ ११ ॥ नहि नाप जव प्रागनो ए। नृप सुर्णे निरमल जाव। समकित सा हीयो ए । धर्मवतीको नृप बधु ए । जांएयोहे तत्व प्रस्ताव । साची जिन वा सनाए ॥ १२ ॥ चौथ प्रमुख नृप चूँपसुं ए। किरिया शुद्ध करी एह । जलै • चित्त जावसुं ए ॥ नवांग पूजे तिलकसुं ए। चाढे जिन चौवीश । रयण कंचण जड्याए ॥ १३ ॥ ॥ तिलक २ सें पांमियो ए । समकित एह सती स। जनम सफलो गि ए । भगवन तपविधि नाषीयै ए । नल क बोध वरीस । पीहर षटकायनाए ॥ १४ ॥ आदिनाथ अरिहंतनाए । षट् उपवास क हस । त्री चौबीहारस्युं ए ॥ चौथ दोय जिन बीरनाए । अजिता दिक बा वीस | आणा गुरु शिर वहीए ॥ १५ ॥ पोषध तीश त्रीनें थयाए । पूजन T ति क चढाय । तारक जगदीसनें ए । उद्यापन संघ नक्तिसुं ए । जन्म सफ ल नल राय । सूधैमन साधीयै ए॥ १६ ॥ सुण वांणी सम कित ग्रहैए । पयप्रणमी गुरु वीर । चित्त नमाहीयो ए ॥ इण पर जे नवि आदरे ए । थायै चरम शरीर । मूल सुख शाशतो ए ॥ १७ ॥ कलशः ॥ श्रीशांतिदाता त्रिज गाता नविक ध्याता सुखकरा । इम सतीय साध्यो तप आराध्यो सुजश बांध्यो शिव घरां । यागमे प्राखै सुरीय साखे सगुरु जाषे सुण यथा । सुध aria aविक जावै विजय विमल जिनवर कथा ॥ १८ ॥
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इति तिलक तपस्या स्तवन संपूर्णम् ॥ ॥
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॥ तिलक तपस्या विधिः ॥
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॥ ॥ शुभ दिन गुरुके पास । तिलक तपस्या ग्रहण करके । तीश (३०) उपवास करै । (प्रथम) श्रीरूपनदेव स्वामीके (६) व उपवास करे (जब) ॥ ॥ ॥ * ॥ १ ॥ श्रीरुष देव स्वामी सर्वज्ञाय नमः ॥ ॥
इस पदको (२०००) गुरानो करे । फेर श्रीमहावीर स्वामीके ( २ ) दो उपवास करै । (जब ) ॥ ॥
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१ ॥ श्रीमहावीरस्वामी सर्वज्ञाय नमः ॥ ॐ ॥
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