________________
- १५ पूरब, तिलक तपस्या स्तवन बिधि. ४२९ ॥ ॥ अथ (१४) पूरब तपविधिः ॥ ॥
॥ चवदै पूर्बकी तपस्याके (१४) उपवास करें। (जिस दिन जो पूर्वका नपवास होय । नसी पूर्वके नामसे (२०००) गुणनो करै। स्तवन सुरें। इस स्तवनमें १४ पूर्बके नाम । और बिधि सर्व लिखी है। नसी मुजब बिबेकी जीव गुरुसें समझके करै । यह तपस्याके करनेंसें ज्ञाना वरणादि कमका योपशम होय । शुन्न ज्ञानका उदय होय ॥४॥ इति १४ पूर्व तपविधिः॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ तिलक तपस्या स्तवन लि०॥ ॥ ॥॥ (दूहा)॥ ॥ सासण देवी सारदा । वांणी सुधारस वे ल। बालक हितनणी वगसियै। सुबुधि सुरंगी रेल ॥ १॥ नवम अंग जि नपूजतां । मनलहि सुनपरिणाम । तप तिलके फल पामियें । दवदंती गु णधाम ॥२॥ ॥ (ढाल)॥ * ॥ वीर जिणेसर नपदिसे ( एदेशी)॥ कमला जिम कुंमल पुरै । नुज बल नरपतिजीमोरे । पदमनी पदम सु वासना। श्वेतगज स्वप्नीमोरे (पदम०) ॥१॥ परतख्य फल ए पुन्य ना। प्रसवीमुता पूरै माशेरे । दवदंती नाम दीपतो । गुणमणि बुधि प्रका शेरे (प०) ॥ २ ॥ चौसठ कला विचकणा । रूप गुणें करी रंजारे। देव गुरु धर्म दीपावती । ब्रतधारी दृढ वनारे (५०) ॥३॥ प्रतिमा पूजै श्रीसांतीनी । देवे दीधी त्रिकालो रे । मात पिता प्रमोदमुं । स्वयंवर वर मालोरे। ( पदमनी० ) ॥ ४॥ नवमाया धिपश्री निषदनो । नल लिखी यो निनामरे। आनन्दमुं पंथावतां । पूरब पुन्य वाम रे (प०) ॥५॥ मशमरयणी तमन्नरी। मधु व कुंत इहां वनमेंरे। मणि नाले तेज दिनमणी। जाग्रत देखी अहो मनमें रे (प०)॥६॥ग्यांनधारी गुरु कोइ मिले। पूरीय एह प्रसन्नोरे। कर्म बलै मुनि आवीया । परीसह जीत मदन्नोरे (प०)॥७॥ पंच जीत पंच मालता । टालता पुस्सह सबलारे । संजम शुध सं
जालता । उद्यम शिव सुख कमलारे (प०) ॥८॥ (दूहा ) मणि तेजें - मुनि तरुठये । स्थथकी स्त्री जरतार। देवै तीन प्रदक्षिणा। विधसुं चरण जुहार
॥ ९॥ देशना सुण पावन थया। ग्यान सुधारस पाय । को तप परनव तिल