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रत्नसागर श्रीजिनपूजा संग्रह.
पूजामें सामग्री ज्यो पहली नवपदजीकी बिधके ठिकाणें लिखी है ( सो ) सर्व सामग्री इहां (२४) चोईस लेणी । एक एक महाराजकी पूजा पढायके । प्रथम जल । पीछे चंदन । ऐसें अष्टद्रव्य अनुक्रमसें चढावे । (पीछे) संपूर्ण प्रजा हयां बाद। गुरुनक्ति करें । साहमी बहल करे। (इहां) विशेषविधि गुरूके मुखसें समजके करणी ॥ (यह ) रुषमंगल सुणनेंवाले पूज वाले भव्य जीवोंके घरमें कभी उपद्रव न होगा । सदा आनंद बाह रहेगा । इत्यनंविस्तरेण । इति ऋषिमंगल सुणनें (वा) पूजन करनें की विधि ॥
॥ * ॥ अथ विंशतिपद पूजा विधि लिख्यते ॥ ॥
॥ * ॥ ( दूहा ) ॥ ॥ सुखसंपति दायक सदा । जगनायक जिनचंद | विधनहरण मंगलकरण । नमो नानि नृप नंद ॥ १ ॥ लोकालोक प्रका सिका । जिनवाणी चितधार । विंशतिपद पूजनतणो । कहिस्युं विधि वि सतार ॥ २ ॥ जिनवर अंगे जाषिया । तप जप बहु परकार । विंशतिपद तप सारिसो। वरन कोई नंदार ॥ ३ ॥ दान शील तप जप किया ॥ नाव विना फलहीन । जैसें भोजन लवण विन । नहीं सरस गुणपीन ॥ ४ ॥ जे नवीयण सेवै सदा । नावै थानक वीश । ते तीर्थकर पदल है । वंदे सुर नर ईश ॥ ५ ॥ ( ढाल ) श्री अरिहंतपद १ सि६पद २ ध्यावो । प्रवचन ३ आचारिज ४ गुणगावो । स्थविर पंचमपद ५ पुन रुवकाया ६ । त पसी ७ नाण ८ दंसण ९ मनमाया १ (नहालो) मननाय विनया १० वश्यका ११ मलशील १२ किरीया १३ जानीये । तप १४ विविध उत्तम पात्र १५ वेयावच्च १६ समाधि १७ वखानीयै । हितकर पूरब नाणसंग्रह १८ धरौ मन सुजगीसए । श्रुतनक्ति १९ फुनि तीरथप्रजावन २० एह थान कवीस २ ॥ ( ढाल ) एथानकवीस २० जग जयकारा । जपतां नही यै जिनपद सारा । करम निकंदै बिसवावीसे । नाष्या जग तारक जग दीसे ॥ ३ ॥ (उल्लाजो ) जगदीश प्रथम जिणेंद जगगुरु चरम जिनवर जी मुदा । जव तीसरे पद सकल सेवा लही जिनपति संपदा | बावीस जिनवर सकल सुखकर इंद्र जसु गुणगाइये । इक दोय त्रिण सहुपद जपी ने तीर्थपति पद पाइये ॥ ४ ॥ ॥
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