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रत्नसागर. ६ थंमिला दरवों के बाहर दो पासे पमिले है ॥ ६ मिला ( जहां) नचार प्रश्रवणकी जगा दोनुं तरफ पमिले है॥ ॥ ॥ ॥ ॥ इति २४ थंमिला पमि लेहण विधि संपूर्णम् ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ पाक्षिकादिक पडिक्कमण विधि लिख्यते॥ ____ (तिहां) प्रथम बंदित्तू सूत्र पर्यंत । देवसिक पमिकमी । १ । खमासमण देई । देवसी आलोइयं पमिकता । इडा० सं० न०। पदी मुहप . त्ती पमिलेहुँ । (चौमासै ) चौमासी० मुह० (संवहरी) संवबरी मुहपत्ती पमिलेहुं । प3 (गुरुकहै पमिलेह ) प इडं कहै । दूजी खमासणदेई । मुहपत्ती पमिलेही। वांदणाथै । तिहां ( पक्खीमें ) पख्खो बइकतो । (चौमासी में) चौमासी वइक्वंतो। (संवबरीमें ) संबडरो वइक्तो । इम यथा योग्य कहै । ( पछै गुरु कहै ) पुण्यवंतो देवसीने स्थानिक, पाक्खिक (चनमासिक) संवडरिक नणज्यो । गक जयणा करज्यो । मधुर स्वरै पमिकमज्यो । खासै सो विवरा सुफ खासज्यो। मामलमें सावचेत रहज्यो पठे सगलाही कहै । तहत्ति । प की । इलाका० सं० न० । संबुधा खामणेणं । अब्नुहिनवि अग्निंतर । पक्खियं (३) खामें (गुरु कहै खामेह) पवै मस्तक अंजली करतो थको । इदं खामेमि पख्खियं ( ३ ) कही । गोमालीयें वैसी । मस्तक नमावी । दक्षिण हाथ गुरु साहमो करी मुहपत्ती मुखें देई । (पक्खियें ) पनरसन्हं दिवसाणं । पनरसन्हं राईणं । जंकिंचि अप्पत्तियं । ( इत्यादि सर्वपाठ कहै ) चनमासे ॥ चनएहं मासाणं । अहएहं पक्खाणं । वीसोत्तरसो राइं दियाणं । जंकिंचि अप्पत्तियं (इत्यादि कहै ) संवकरीयें। वाल सएहं मासाणं । चोवीसएहं पक्खा एणं । तिन्निसय सठि राइं दियाणं । जंकिंचि अप्पत्तियं ( इत्यादिकहै ) तिवारे (गुरु पिण मिठामि मुक्कम कहे )। तिहां दोय साधु नचरता हुवे (तो) पाखिये (३) चौमामीयें (५) संबरिये (७)साधुनें खमावै । प ऊठी । अवग्रह मांहि रह्यो कहै । इलाका० सं० ० । पक्खियं आलो वू (गुरु कहै आलोएह ) पडे इथं आलोएमि। जोमे पक्खिन (३) अइ यारो कन ( इत्यादि सूत्र जणी ) संस्पै ( अथवा ) विस्तारें । पाखी